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Sunday, 6 October 2013

किताबें तो थी ही नहीं अब गुरुजी भी गए

** जिले के 87 स्कूलों से गणित-साइंस के शिक्षक दूसरे जिलों में समायोजित
बिलासपुर : सरकारी स्कूलों में न तो पढऩे को किताबें हैं और न ही पढ़ाने को अध्यापक। पहले सेमेस्टर में तो बच्चे केवल किताबों की इंतजार करते रहे। दूसरे में तो टीचर की इंतजार भी करनी पड़ेगी। शिक्षा विभाग की दोषपूर्ण कार्यप्रणाली के चलते जिले के सैकड़ों स्कूलों में साइंस व गणित के टीचर भी नहीं रहे। शिक्षा विभाग ने प्राइमरी स्कूलों को अपग्रेड कर मिडिल का दर्जा तो दे दिया लेकिन यहां न तो इंफ्रास्ट्रक्चर दिया और न ही शिक्षक भेजे। जिले में ऐसे अनेक स्कूल है जहां मिडिल कक्षाओं को प्राइमरी के टीचर ही संभाल रहे हैं। 
शिक्षा विभाग का अजब कारनामा: 
नई भर्ती के नाम पर शिक्षकों को इस जिले में ज्वाइन करवाया जाता है। लेकिन एक-आध साल के बाद जैसे ही उनके मूल जिलों में पद रिक्त या सृजित होते हैं, उन्हें यहां से बदल दिया जाता है। इस बार भी ऐसा ही हुआ। 2011 में शिक्षा विभाग में एक हजार से अधिक गणित टीचर की भर्ती की गई थी। जबकि स्कूलों में गणित की पोस्ट कम थी। इसलिए इन गणित अध्यापकों को जिले के उन मिडिल स्कूलों में तैनात कर दिया गया जहां साइंस की पोस्ट खाली थी। हालांकि क्षेत्र के लोगों ने इसे बच्चों के हित में मानते हुए सरकार की सराहना की। लेकिन दो साल पूरे भी नहीं हुए कि इन शिक्षकों को यहां से उनके मूल जिलों में तबादला कर दिया गया। यहां के करीब सौ मिडिल स्कूल बिना गणित व साइंस टीचर के रह गए। 
रेशनलाइजेशन में उठी पोस्ट : 
बीईओ धर्मसिंह राठी ने बताया कि गणित की पोस्ट रैशनलाइजेशन के तहत उठी है। उन्होंने बताया कि मूल पद खाली होने के बाद शिक्षक को दूसरे पद से हटा कर उसके मूल पद पर भेज दिया गया है। इसके चलते जिले से लगभग 87 गणित टीचर समायोजित हुए हैं।
बिना पोस्ट ही कर दी गई नियुक्ति 
सूत्रों के अनुसार मिडिल स्कूलों में गणित की पोस्ट ही नहीं होती। फिर भी इन अध्यापकों को मिडिल स्कूलों में ज्वाइन करवा दिया गया। अभिभावक रामचंद्र शर्मा, रोशन लाल, सलीम खान, अकबर खान, रोजी सिंह, असलम मोहम्मद, मुखबरी व सोरण लाल का कहना है कि फिर सरकार या विभाग की ऐसी कौन सी मजबूरी होती है कि इन्हें दूसरे जिलों में भेज दिया जाता है। जब नौकरी दी है तो कम से कम पांच साल तो उसी स्कूल में काम लिया जाए।   db

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