सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के बाद भी कई प्रदेशों में पर्यावरण शिक्षकों की नियुक्ति न करने के मामले में नेशनल ग्रीन टिब्यूनल ने एमएचआरडी, चंडीगढ़, दिल्ली और पंजाब के मुख्य शिक्षा सचिवों के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किए हैं। टिब्यूनल ने इनके समेत आठ राज्यों को पर्यावरण शिक्षक भर्ती न करने के मामले में 11 मार्च तक पेश होकर अपने जवाब दाखिल करने के आदेश दिए थे। टिब्यूनल ने सभी पर दस हजार का जुर्माना भी लगाया है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के बाद पर्यावरण विषय की शिक्षा देने के लिए भले ही देश भर में इस विषय को अनिवार्य विषय घोषित कर दिया हो, लेकिन कई प्रदेशों में आज भी पर्यावरण विषय के शिक्षक नहीं लगाए गए।
इस मामले में मैग्सेसे अवार्डी और पर्यावरणविद डॉ. एमसी मेहता ने ग्रीन टिब्यूनल में याचिका दायर की थी। इसकी पहली तारीख पर टिब्यूनल ने एमएचआरडी, यूजीसी, एआइसीटीई, दिल्ली सरकार, हरियाणा सरकार, पंजाब सरकार, चंडीगढ़, मिजोरम और गोवा सरकार को तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने के आदेश दिए थे। 11 मार्च को पेशी पर केवल यूजीसी, हरियाणा सरकार, एआइसीटीई, मिजोरम और गोवा ने अपना पक्ष रखा, जबकि मानव संसाधन विकास मंत्रलय, दिल्ली सरकार, पंजाब सरकार और चंडीगढ़ प्रशासन ने अपना पक्ष नहीं रखा और न ही टिब्यूनल के सामने पेश हुए। इस पर टिब्यूनल ने 11 मार्च को एमएचआरडी सचिव, दिल्ली के प्रधान शिक्षा सचिव, पंजाब के प्रधान शिक्षा सचिव और चंडीगढ के शिक्षा सचिव के गैर जमानती वारंट जारी किए हैं। साथ ही इन पर दस-दस हजार रुपये जुर्माना भी लगाया है।
क्या है मामला?
पर्यावरणविद और इस मामले से शुरू से जुड़े डॉ. नरेश भारद्वाज ने बताया कि वर्ष 1991 में सर्वोच्च न्यायालय ने देश में पर्यावरण विषय को लागू करने के आदेश दिए थे। इसके बाद वर्ष 2004 में राज्य सरकारों ने पर्यावरण को अनिवार्य विषय घोषित कर दिया था। जबकि इसके बाद से ही कॉलेज स्तर पर एक भी पर्यावरण के शिक्षक की भर्ती नहीं की गई। केवल खानापूर्ति के लिए अन्य विषयों के शिक्षक ही इस विषय को पढ़ा रहे थे। जबकि कई शिक्षक तो ऐसे विषयों के थे, जिनका पर्यावरण विषय से कोई लेना-देना नहीं है। इसका खुलासा आरटीआइ के माध्यम से हुआ। इसी मामले को लेकर डॉ. एमसी मैहता ने ग्रीन टिब्यूनल में याचिका दायर की थी। djkkr
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