** आक्रोश : सरकार इस्कॉन से पकवाना चाहती भोजन, विराेध में प्रदेशभर की वर्कर करनाल में जुटीं
करनाल : इस्कॉनफूड रिलीफ फाउंडेशन को सरकारी स्कूलों के बच्चों के लिए दोपहर का खाना पकाने का ठेका देने की योजना के विरोध में प्रदेश भर से सैकड़ों मिड डे मील वर्कर बुधवार को करनाल में जुटीं। सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। वर्करों के आक्रोश को देखते हुए एसडीएम राजीव मेहता मुख्यमंत्री के ओएसडी अमरेंद्र सिंह सक्रिय हुए। उन्होंने 17 जून को शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा अफसरों से मुलाकात कराना तय किया। जब यह मीटिंग शेड्यूल लिखित रूप में हाथ में आया, तभी वर्कर शांत हुईं।
मिड डे मील वर्कर्स यूनियन की प्रदेश महासचिव शरबती देवी प्रधान सरोज ने कहा कि पिछले 15 साल से इस योजना को सफल बनाने के लिए वर्करों ने अपना पसीना बहाया है। उन्होंने कहा कि स्कूल में वर्कर साफ-सुथरा ताजा भोजन बनाती हैं। सीटू के प्रदेश महासचिव सतबीर सिंह, अध्यक्ष सुरेंद्र मलिक, सर्वकर्मचारी संघ हरियाणा के प्रदेश महासचिव सुभाष लांबा ने कहा कि यदि शिक्षा मंत्री के साथ 17 जून को होने वाली बातचीत में मांगों का समाधान नहीं निकला, तो निर्णायक आंदोलन छेड़ा जाएगा। 12 जुलाई को प्रदेश के सभी विधायकों के घर पर दस्तक देंगे। मिड डे मील वर्करों को 15 हजार रुपए मानदेय और नौकरी की सुरक्षा की मांग है।
सरकारी स्कूलों में दोपहर का भोजन योजना पर सरकार के तर्क और वर्करों का विरोध यूं समझें
बदलाव क्या : संस्थाका पूरा काम मशीनों से, ब्रांडेड कंपनियों का राशन
इस्कॉनमिड डे मील हरियाणा बलवान सिंह कहते हैं कि संस्था गुणवत्ता पर ध्यान देती है। ब्रांडेड मसाले, दूध सब्जियां इस्तेमाल होती हैं। भांप से बनने वाले भोजन को मशीनों में तैयार किया जाता है। बर्तन स्टेनलेस स्टील के हैं। नए मेन्यू में दलिया, राजमा -कढ़ी, चावल, छोले, पूरी, खीर हलवा होगा।
4 जिलों में पहले से ही इस्कॉन
गुड़गांव के 625 स्कूलों में इस्कॉन दो साल से दोपहर का खाना परोस रहा है। फरीदाबाद, पलवल और कुरुक्षेत्र (तीन ब्लॉक) में इसी संस्थान के पास काम है। वैसे दिल्ली, राजस्थान, आंध्रप्रदेश में इस्कॉन की 32 आधुनिक रसोइयों में करीब 12 लाख बच्चों का खाना पकता है। योजना है कि संस्था एक किचन से दो ब्लॉकों में भोजन की सप्लाई करेगी।
सरकार की सोच : पैसाभी बचे और शिक्षकों की मेहनत भी
अभी मिड डे मील वर्कर हैं लेकिन राशन संभालने से लेकर कुकिंग पर निगरानी के काम में शिक्षक भी फंसे रहते हैं। गैस सिलेंडर जुटाने का जिम्मा स्कूल मुखिया के ऊपर रहता है। राशन की गुणवत्ता को लेकर अकसर सवाल उठते रहते हैं। मिड डे मील वर्करों की सेलरी के रूप में 87.5 करोड़ खर्च होते हैं।
विरोध क्यों : 35हजार मिड डे मील वर्करों की नौकरी को खतरा
सरकारी स्कूलों में करीब 35 हजार मिड डे मील वर्कर हैं। जिन्हें ढाई हजार रुपए मासिक मानदेय मिलता है। सरकार ने स्पष्ट नहीं किया है कि ठेका इस्कॉन को देने के बाद इन मिड डे मील वर्करों का क्या होगा। हालांकि संभावना है कि इन वर्करों का इस्तेमाल मिल की डिलीवरी लेने अौर बांटने में होगा। db
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