वस्तुओं के जो बाजार भाव सातवें वेतन आयोग ने जमा किए हैं, उसके चलते नया वेतन आयोग कर्मचारियों के लिए छठे वेतन आयोग जैसा लुभावना नहीं रहेगा। बताया जा रहा है कि सातवें वेतन आयोग को बाजार में वैसी महंगाई नहीं दिखाई दे रही है, जैसी कि वास्तविकता में है। पिछले वेतन आयोग ने बाजार में महंगाई पर काबू पाने में सरकार की नाकामी के चलते कर्मचारियों के भत्तों में जबर्दस्त इजाफा किया था। कर्मचारियों के वेतन में पौने दो गुना तक की बढ़ोतरी हुई थी।
केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए नए वेतन आयोग में बेसिक वेतन 26000 रुपए मासिक करने का आग्रह किया गया है लेकिन खबर है कि जस्टिस अशोक कुमार माथुर की अध्यक्षता वाला सातवां वेतन आयोग इतना मासिक वेतन देने के लिए केंद्र सरकार को नहीं कहने वाला है। अभी सबसे छोटे कर्मचारी का बेसिक वेतन 7000 रुपए है. महंगाई के मद्देनजर वेतन में यह छलांग साढ़े तीन गुना से ज्यादा मांगी गई है।
इसी प्रकार से कैबिनेट सचिव और सबसे छोटे कर्मचारी के वेतन के बीच फासला 1:8 (एक अनुपात आठ) रखने की मांग है। खबर है कि सातवां वेतन आयोग इसे भी नहीं मानने जा रहा है। अभी कैबिनेट सचिव और सबसे छोटे कर्मचारी के वेतन में 1:12.5 (एक अनुपात साढ़े बारह) का अंतर है।
कर्मचारियों के लिए खुशखबरी यह है कि सातवां वेतन आयोग यह जरूर ध्यान रखेगा कि छोटे-बड़े कर्मचारियों की वेतन वृद्धि एक समान प्रतिशत में की जाए। पिछला वेतन आयोग कई मामलों में बहुत अच्छा रहा था लेकिन उसमें यह विसंगति रह गई थी कि किसी पद को 5% की वेतन वृद्धि मिल गई थी और किसी को उससे कम।
सबसे छोटे कर्मचारी के लिए बेसिक वेतन 26000 रुपए करने की मांग करने वाले मजदूर संगठनों का तर्क यह है कि अभी उन्हें 7000 बेसिक और 113% डीए मिलाकर (इसमें मोदी सरकार से मिली 6 % की बढ़ोतरी भी शामिल की जानी है) 15 हजार रुपए से ज्यादा मिल रहे हैं. इसलिए बेसिक वेतन 26 हजार करना ज्यादा बड़ी बढ़ोतरी नहीं है. उनका यह भी कहना है कि सातवें वेतन आयोग ने बाजार में वस्तुओं के जो भाव जमा किए हैं, वो पुराने हैं और थोक बाजार से जमा किए हैं। बताया यह भी जा रहा है कि गेहूं, चावल, दाल के भाव काफी ऊपर चढ़े हुए हैं. इन दलीलों का असर सातवें वेतन आयोग पर होगा, अभी कहना मुश्किल है। samay
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