चंडीगढ़ : युवाओं का इंजीनियरिंग की पढ़ाई से मोह भंग हो रहा है। वे अब छोटी
अवधि के डिप्लोमा कर नौकरी हासिल करने में अधिक रुचि ले रहे हैं। सात साल
पहले तक जिन इंजीनियरिंग कॉलेजों और पॉलीटेक्निक में दाखिलों के लिए
मारामारी मची रहती थी, आज उनमें 60 प्रतिशत सीटें खाली हैं। आलम यह है कि
विद्यार्थियों की कमी से 38 कॉलेज बंद हो गए। इनमें 28 प्राइवेट
इंजीनियरिंग कॉलेज और 9 पॉलीटेक्निक के साथ-साथ एक सरकारी इंजीनियरिंग
कॉलेज भी शामिल है।
वर्ष 2009-10 में राज्य में सात सरकारी इंजीनियरिंग
कॉलेज थे, जिनमें 2050 सीटों की अपेक्षा 36 सीटें खाली रह गईं थी। 2014-15
में इंजीनियरिंग कॉलेज 10 और सीटें 2900 हो गईं। इनमें से 546 सीटें खाली
रह गई, जबकि 2015-16 में एक सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज बंद हो गया और नौ
कालेजों में 2830 सीटों की अपेक्षा 830 सीटें बिना दाखिलों के रह गईं।
पॉलीटेक्निक कॉलेजों में भी दाखिलों का यही हाल है। 2009-10 में 22 सरकारी
कॉलेज थे। इनमें 13 हजार 900 सीटें थी मगर तब एक भी सीट खाली नहीं रही।
2012-13 में पालीटेक्निक कॉलेजों की संख्या बढ़कर 26 हो गई, जबकि 2015-16
में एक कॉलेज बंद हो गया और इनकी संख्या 25 रह गई। इन कॉलेजों में 9900
सीटों की अपेक्षा 2060 सीटों पर दाखिले नहीं हो पाए हैं।
60 प्रतिशत सीटें
रही खाली :
राज्य में प्राइवेट इंजीनियरिंग एवं पॉलीटेक्निक कॉलेजों की
संख्या 200 के करीब है। सिविल, मैकेनिकल, कंप्यूटर, इलेक्ट्रानिक्स,
आर्किटेक्चर और फार्मेसी सहित कई ट्रेड सरकारी व गैर-सरकारी कॉलेजों में चल
रहे हैं। इनमें अलग-अलग ट्रेड के लिए कुल 2 लाख 27 हजार 554 सीटें हैं
जिनमें से 1 लाख 26 हजार 384 सीटें पिछले सत्र में खाली रह गईं थी। यानी 60
प्रतिशत तक सीटें कॉलेजों में खाली रही। dj
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