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Monday, 3 April 2017

लापरवाही :विद्यार्थियों को पढ़ने को नहीं दीं तो दीमक खा गई ‌~3 करोड़ की किताबें

** एक दशक से सरकारी प्रेस के मुख्य स्टोर में रखकर भूल गए अधिकारी
** फटी किताबें छह जिलों में भेजी, अब सिलेबस बदलने से हुईं बेकार बाकी का वितरण जारी, लाइब्रेरी में सहेज कर रखने के निर्देश 
रोहतक : राजकीय पाठ्य पुस्तक बिक्री भंडार में रखी एक दशक पुरानी तीन करोड़ की किताबों को दीमक खा गए हैं। पुरानी किताबों का पाठ्यक्रम बदल जाने से अब वे विद्यार्थियों के लिए भी किसी काम की नहीं रही। रोहतक जिले के सरकारी प्रेस डिपो में रखी किताबों को अब प्रदेश में वितरित कराने का काम तेज कर कर दिया गया है। सवाल यह है कि यदि समय पर विद्यार्थियों को किताबें मिल जातीं तो उनकी पढ़ाई आसान हो जाती, लेकिन उच्चाधिकारी इन किताबों को स्कूलों की लाइब्रेरी में रखकर विद्यार्थियों को पुराने सिलेबस से अवगत कराने की बात कह रहे हैं। 
रोहतक जिले के डिपो में हजारों की संख्या में डंप किताबों में दीमक लग चुकी है। आउट ऑफ सिलेबस की किताबों से बच्चों को अवगत कराने के लिए उच्चाधिकारियों ने स्कूलों में लाइब्रेरी खोलने का प्रस्ताव स्वीकृत किया है, इसमें प्रत्येक स्कूल में ये किताबें उपलब्ध रहेंगी। हालही में डिपो से जींद, पानीपत, अंबाला, करनाल, यमुना नगर झज्जर सहित अन्य जिलों में किताबों का वितरण कराया गया। वितरण होने वाली अधिकांश किताबों में दीमक लगी हुई मिली। डिपो के अंदर भी रखी अधिकांश किताबों में दीमक लगने से वे खराब होने लगी हैं। स्कूल प्रबंधन असमंजस की स्थिति में हैं कि किताबों में प्रकाशित पाठ्यक्रम वर्तमान में स्वीकृत नहीं है, इसलिए इन किताबों से पढ़ाई कैसे कराएं। सरकारी स्कूलों में पहली से 8वीं कक्षा तक फ्री किताबें मुहैया कराने को माध्यमिक शिक्षा विभाग ने वर्ष 2000 से लेकर 2005 तक पुस्तकें प्रकाशित कराई थी। उच्चाधिकारियों ने दावा किया है कि स्कूलों में बच्चों की संख्या घटने से भारी संख्या में किताबें बच गईं हैं। उन्हें अब सहेजने की तैयारी की जा रही है। 
लाइब्रेरी में सहेजने की कवायद 
उच्चाधिकारियोंने बताया कि जब भी किताबों से सिलेबस बाहर हो जाता है तो उसकी नीलामी कराई जाती थी, लेकिन इस बार बच्चों को पुराने सिलेबस से अवगत कराने के लिए उन्हें स्कूलों में लाइब्रेरी बनाकर वहां रखवाई जाएगी, ताकि बच्चे पुराने सिलेबस को भी जान सकें। वहीं स्कूल प्रबंधन अतिरिक्त जिम्मेदारी को स्वीकारने में कतरा रहे हैं। 
बच्चोंकी संख्या घटने से बची थी किताबें 
"स्कूलों में छात्रों के नामांकन के हिसाब से ही किताबों की छपाई का ऑर्डर होता है। सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या घटने से किताबें बच गई। कई वर्षों से पुरानी काफी किताबें छापाखाने में एकत्रित थी। किताबें रद्दी में बेचने से अच्छा था कि स्कूलों की लाइब्रेरी में भेजा जाए, ताकि कोई बच्चा पुराने सिलेबस को जानना चाहे तो वह जान सके। नए सेशन में बच्चों को नई पुस्तकें उपलब्ध कराने के लिए ऑर्डर किया है। जल्द ही जाएंगी।"-- वीरेंद्रकुमार दहिया, एडिशनल डायरेक्टर, मौलिक शिक्षा निदेशालय 
5 अप्रैल तक 60 से 65 हजार किताबों का होना है वितरण 
सरकारी प्रेस डिपो की प्रभारी शीला ने बताया कि प्रत्येक जिले में कक्षा एक से पांच तक में 40 से 65 हजार किताबों का सेट वितरित कराने के निर्देश मिले हैं। शिक्षा विभाग की ओर से मिली सूची के अनुसार प्रत्येक जिले के डीईईओ को किताबों का सेट मंगवाना है। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि हमारे डिपो में रखी किताबों में दीमक नहीं लगी है। डंप किताबों को अच्छे से सहेजकर रखा गया है। 




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