** स्कूल न आने से चार करोड़ बच्चे मिड डे मील से वंचित
नई दिल्ली : सरकार खुश है कि देश के 22 लाख बच्चों को छोड़ बाकी सभी को स्कूल नसीब हो गया। लेकिन, स्कूलों में दाखिल बच्चे पढ़ भी रहे हैं या नहीं, यह सवाल अब भी बना हुआ है। खासतौर से सरकारी स्कूलों में। बच्चों के नाम रजिस्टर में दर्ज तो हो गए हैं, फिर भी वे वहां की पढ़ाई से कन्नी काटने लगे हैं। स्कूलों से बच्चों के नदारद रहने का ही नतीजा है कि कागजों में दर्ज लगभग चार करोड़ बच्चे मिड-डे मील भी नहीं ले रहे हैं। देश के सरकारी स्कूलों के रजिस्टर में लगभग 14 करोड़ बच्चों के नाम पढ़ने वालों में दर्ज है। सरकार कक्षा एक से आठवीं तक के उन बच्चों को मिड डे मील (दोपहर का भोजन) इसलिए दे रही है कि वे पढ़ने के लिए स्कूल में रुकें। लेकिन मिड डे मील भी लगभग चार करोड़ बच्चों में सरकारी स्कूलों की पढ़ाई के प्रति आकर्षण नहीं पैदा कर पा रहा है। इस स्थिति से केंद्र सरकार भी हैरत में है। सूत्रों का कहना है कि जब स्कूल में छात्र हैं ही नहीं तो मिड डे मील लेगा कौन? मानव संसाधन विकास मंत्रलय के उच्चपदस्थ सूत्र भी मानते हैं कि सरकारी स्कूलों में दाखिले के बाद भी तमाम बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में स्थिति ज्यादा खराब है। उसमें भी उत्तर प्रदेश में पहली बार ऐसी स्थिति बनी जब प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों के सिर्फ 48 प्रतिशत बच्चे ही मिड डे मील ले रहे हैं। मतलब साफ है कि प्रदेश के सरकारी स्कूलों में दाखिला लेने के बाद भी 52 प्रतिशत बच्चों ने उससे मुंह फेर रखा है। सरकारी स्कूलों से बच्चों के मुंह फेरने की इस स्थिति से बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, दिल्ली, चंडीगढ़, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्य भी अछूते नहीं हैं। कमोबेश यही हालत वहां भी है। पूर्व के अध्ययनों या सर्वे में कई बार यह बात सामने आई है कि स्कूलों में छात्रों की सुबह की उपस्थिति दोपहर बाद कम हो गई। तब तर्क यह था कि मिड डे मील लेने के बाद कुछ बच्चे घरों को लौट जाते हैं। लेकिन अब तो स्थिति ही अलग है, वे मिड डे मील भी नहीं ले रहे हैं। पश्चिम बंगाल समेत कई राज्य ऐसे भी हैं, जहां 92 से 99 प्रतिशत तक छात्र मिड डे मील ले रहे हैं।
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