कंप्यूटर शिक्षकों की आधी अधूरी मांग करके सरकार व शिक्षा विभाग ने फिर साबित कर दिया कि उसकी निर्णय क्षमता अभी परिपक्व नहीं। कॉलेज के टीचरों का अनुबंध एक वर्ष बढ़ा दिया लेकिन स्कूल कैडर वालों को नजरअंदाज कर दिया। विभाग को यह स्पष्ट करना चाहिए कि एक को संतुष्ट जिस आधार पर किया, दूसरे के साथ न्याय करने में क्या वह पर्याप्त नहीं था? तात्कालिक समायोजन में भी दो मानक अपनाना किसी स्तर पर विवेकपूर्ण नहीं माना जा सकता। सरकारी स्कूलों से हटाए गए कंप्यूटर शिक्षक अपनी फरियाद मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक लगा चुके लेकिन हर जगह से उन्हें मिला केवल आश्वासन। अब महाधिवक्ता ने भी शुष्क सहानुभूति जता कर नए सिरे से हो रही भर्ती में शामिल होने की सलाह देकर उनके दर्द को और बढ़ा दिया। हाई कोर्ट पहले निर्णय दे चुका कि अनुबंध शिक्षकों को हटा कर सरकार नए अनुबंध पर नियुक्ति नहीं दे सकती। इसके बावजूद कंप्यूटर शिक्षकों की भावनाओं से खिलवाड़ कतई उचित नहीं। पिछली नियुक्ति भी शिक्षा विभाग द्वारा तैयार मेरिट के आधार पर हुई थी। अब अपने ही नियम को बदलने का विभाग का मंतव्य समझ से बाहर है। हर तरफ से रास्ता बंद होने पर अस्तित्व के लिए ये शिक्षक सरकार से फिर आमने सामने की लड़ाई को तैयार बैठे हैं। भीषण गर्मी में सड़क पर उतरते हुए उन्होंने पंचकूला में शिक्षा सदन का घेराव किया। हालांकि प्रदर्शन करते कई कंप्यूटर शिक्षक बेहोश भी हो गए लेकिन उन्होंने न्याय पाने के लिए अपने दृढ़ संकल्प का परिचय दे दिया है। सरकार को अप्रिय स्थिति को टालने के लिए तत्काल ठोस, तार्किक और व्यावहारिक उपाय अमल में लाने चाहिए। सबसे पहले तो वह अपनी नीति स्पष्ट करे ताकि उसकी नीयत की थाह मिल सके। पहले भी बताया जा चुका है कि राज्य में शिक्षा क्षेत्र की स्थिति बेहतर नहीं है, हर स्तर पर उसमें सुधार की नितांत आवश्यकता है। उदाहरण के तौर पर गेस्ट टीचर, पात्र अध्यापक, जेबीटी के मामले दिए जा सकते हैं। शिक्षा विभाग समस्या समाधान में जरा भी तत्परता नहीं दिखा रहा। सरकारी स्कूलों में कार्यरत रह चुके कंप्यूटर शिक्षकों के बारे में सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए अनुबंध को बढ़ाने या अन्य समायोजन के लिए विभाग को आगे आना चाहिए, सरकार से विशेष सहयोग मिलना चाहिए। स्थिति खराब होने पर उसका समाधान करने में अतिरिक्त संसाधन, समय और श्रम की जरूरत पड़ती है। djedtrl
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