बिलासपुर : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा है
कि कर्मचारी की ग्रेच्युटी उसकी संपत्ति और संवैधानिक अधिकार है। सुप्रीम
कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर जस्टिस संजय
के अग्रवाल की बेंच ने कहा कि सरकार द्वारा पेंशन और ग्रेच्युटी
कर्मचारियों के रिटायरमेंट पर अवॉर्ड के रूप में नहीं बांटे जाते, बल्कि यह
कर्मचारी की संपत्ति है। इसके भुगतान में देरी पर वर्तमान ब्याज दर के साथ
जुर्माने के साथ भुगतान किया जाना चाहिए। दरअसल, एसईसीएल में कार्यरत
करनैल सिंह 35 वर्ष की सेवा के बाद 31 जुलाई 2013 को रिटायर हुए। कंपनी ने
अनापत्ति प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने सेवा के दौरान आवंटित आवास को खाली
करने के आधार पर उनकी ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं किया। इस पर सिंह ने
संबंधित कंट्रोलिंग अथॉरिटी में आवेदन कर ब्याज के साथ ग्रेच्युटी का
भुगतान करने की मांग की।
एसईसीएलने अपना पक्ष रखते
हुए आवास खाली नहीं करने के कारण ग्रेच्युटी रोकने की जानकारी दी। कंपनी ने
7 मई 2014 को अथॉरिटी में ग्रेच्युटी के 10 लाख रुपए जमा करा दिए, लेकिन
ब्याज का हकदार नहीं माना। कर्मचारी ने अथॉरिटी में अपना पक्ष रखते हुए कहा
कि कंपनी को ग्रेच्युटी रोकने का अधिकार नहीं था। अथॉरिटी ने 23 दिसंबर
2015 को दिए गए आदेश में कहा कि कर्मचारी अनापत्ति और आवास खाली करने का
प्रमाण पत्र पेश नहीं कर सके थे, लिहाजा उन्हें सिर्फ ग्रेच्युटी की राशि
प्राप्त करने का अधिकार है। इस आदेश के खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका
लगाई थी। सिंगल बेंच ने अथॉरिटी के आदेश को सही बताते हुए हस्तक्षेप से
इनकार कर दिया था। इस पर उन्होंने अपील प्रस्तुत की। अपील पर जस्टिस
प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस संजय के अग्रवाल की बेंच में सुनवाई हुई।
8 फीसदी
ब्याज के साथ देनी होगी राशि :
हाईकोर्टने याचिकाकर्ता के रिटायरमेंट यानी
31 जुलाई 2013 से उसे ग्रेच्युटी के वास्तविक भुगतान की तारीख तक 8 फीसदी
वार्षिक ब्याज भी देने के निर्देश दिए हैं। इसके लिए एसईसीएल को चार सप्ताह
का समय दिया गया है। चार सप्ताह में राशि का भुगतान नहीं होने पर 10 फीसदी
वार्षिक ब्याज के साथ राशि का भुगतान करना होगा।
संविधान के अनुच्छेद
300 के तहत कर्मचारी का अधिकार :
हाईकोर्टने सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वीआर
कृष्णा अय्यर, जस्टिस पीबी गजेंद्र गडकर अन्य बेंच द्वारा दिए गए कई फैसलों
का हवाला देते हुए कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 300 के तहत ग्रेच्युटी
कर्मचारी की संपत्ति है, इस कारण उसका संवैधानिक अधिकार भी है। हाईकोर्ट ने
आर कपूर और गोरखपुर यूनिवर्सिटी के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का
उल्लेख किया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि सेवा के दौरान आवंटित
आवास में रिटायरमेंट के बाद निर्धारित अवधि से ज्यादा रहने के कारण
कर्मचारी की ग्रेच्युटी पेंशन नहीं रोकी जा सकती। उसे ब्याज का भी भुगतान
करना होगा।
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