नई दिल्ली : यूजीसी ने विश्वविद्यालय
कॉलेजों में लेक्चरर्स पदों पर भर्ती के नियमों पर साफ किया है कि डिस्टेंस
मोड (दूरस्थ शिक्षा) से की हुई पीएचडी मान्य नहीं होगी। यह जरूरी है कि
छात्र ने या तो फुलटाइम या फिर पार्ट टाइम पीएचडी किसी मान्यता प्राप्त
विश्वविद्यालय या उससे मान्यता मिले कॉलेज से की हो। साथ ही यूनिवर्सिटी को
इस विषय पर डिग्री जारी करने का अधिकार हो। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग
(यूजीसी) के सचिव प्रो. जसपाल संधु ने देशभर के विश्वविद्यालयों को इस
संबंध में सर्कुलर जारी किया है।
इसमेंपीएचडी
के संदर्भ में यह स्पष्टीकरण दिया गया है कि विश्वविद्यालयों और कॉलेजों
में शैक्षिक पदों पर नियुक्तियों में न्यूनतम योग्यता और साथ ही उच्च
शिक्षा की गुणवत्ता प्रबंधन के लिए 2010 के चौथे संशोधन को 11 जुलाई 2016
के राजपत्र में अधिसूचित किया गया है। इसमें साफ है कि पीएचडी रेगुलर होनी
चाहिए। यूजीसी के पास इस संदर्भ में विश्वविद्यालयों एवं अन्य सहभागी
संस्थानों से लगातार पूछा जा रहा है कि रेगुलर पीएचडी का स्पष्टीकरण क्या
है? आयोग की 22 फरवरी 2017 को हुई एक बैठक में तय किया गया है कि इसको
निम्नलिखित तरीके से पढ़ा जाएगा।
क्या है रेगुलर पीएचडी
यूजीसी ने
लिखा है कि कोई भी पीएचडी जो कि किसी विश्वविद्यालय में फुल टाइम
(पूर्णकालिक) या पार्ट टाइम (अर्द्धकालिक ) की गई हो उसको रेगुलर डिग्री
माना जाएगा, किंतु यह डिग्री किसी विश्वविद्यालय की ऑर्डिनेंस और बायलाज के
अनुसार हुई होनी चाहिए और विश्वविद्यालय को डिग्री प्रदान करने का अधिकार
प्राप्त हो। इसके अलावा डिस्टेंस एजुकेशन यानी दूरस्थ शिक्षा माध्यम से
प्राप्त की गई कोई भी पीएचडी रेगुलर नहीं मानी जाएगी। इस बारे में डीयू
एकेडमिक काउंसिल के सदस्य डॉ. हंसराज ने कहा कि यूजीसी के इस निर्देश से कई
शिक्षक जो एडहॉक के तौर पर अपनी सर्विस दे रहे हैं और डिस्टेंस मोड से
उन्होंने पीएचडी की है। वह सब अब बाहर हो जाएंगे।
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