कुरुक्षेत्र : प्रदेश के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में शुमार कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय प्रशासन और प्रदेश सरकार की बेरुखी के कारण कभी कुवि की शान होने वाले 13 विभागों को खो चुका है। इनमें से कई विभाग तो प्रदेश सरकार के समय पर शिक्षक उपलब्ध न कराने और कई विभाग विद्यार्थियों की कमी से बंद करने पड़े हैं। आज आलम यह है कि कुवि के स्टेट्यूट में तो इन विभागों का जिक्र है, लेकिन परिसर में न तो ये विभाग हैं और न ही उनमें पढ़ने वाले विद्यार्थी।
1956 में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कुरुक्षेत्र में संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। उसके बाद संयुक्त पंजाब सरकार में इसे खूब सिंचित किया गया। हरियाणा बनने के बाद प्रदेश का यह एकमात्र और सबसे बड़ा विश्वविद्यालय बनकर उभरा। उसकी और प्रदेश सरकार का भी ध्यान था, लेकिन फिर उत्तरी हरियाणा की राजनीति में कम होती भागीदारी ने कुवि की तरफ प्रदेश सरकार का ध्यान नहीं होने दिया। इससे कभी अपने नाम से ही विख्यात कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में विभागों की संख्या तो बढ़ी, लेकिन पुराने और अहम विभागों को कुवि खोता चला गया। कुवि के स्टेट्यूट के अनुसार कुवि में कभी 63 विभाग थे। उनमें विद्यार्थी ज्ञान अर्जित करते थे, लेकिन कुवि प्रशासन की बेरुखी के कारण लगातार विभागों की संख्या कम होती जा रही है। आलम ये है कि कुवि के स्टेटयूट में रखे गए 63 विभागों में से 13 विभाग बंद हो चुके हैं और अगर जल्द इनकी और ध्यान नहीं दिया गया तो आधा दर्जन विभाग बंद होने के कगार पर हैं।
ये विभाग हुए बंद
कुवि में बंद होने वाले विभागों में आयुर्वेद विभाग, डेंटल विज्ञान विभाग, फूड टेक्नालॉजी, ईसीई इंजीनियरिंग, केमिकल इंजीनियरिंग, कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग, इनफारमेशन टेक्नालॉजी, मैकेनिकल इंजीनियरिंग, डिपार्टमेंट ऑफ एंथ्रोपोलोजी, डिपार्टमेंट ऑफ तमिल और पर्सियन विभाग शामिल हैं।
इन विभागों में छात्रों की कमी
कुवि के संस्कृत विभाग, इतिहास विभाग, लोक प्रशासन, दर्शन शास्त्र आदि विभाग ऐसे हैं, जहां विद्यार्थियों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। इन विभागों की ओर भी कुवि प्रशासन का कोई खास ध्यान नहीं है या फिर इन विषयों में बढ़ रही रोजगार की समस्या के कारण विद्यार्थियों का ध्यान कम है। उससे वह दिन दूर नहीं होगा, जब ये विभाग भी सिर्फ कुवि के स्टेट्यूट में ही नजर आएंगे। dj
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