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Tuesday, 30 December 2014

वर्ष-2014 : पटरी पर नहीं चढ़ पाई शिक्षा की गाड़ी


** पूरे वर्ष चलती रही उठापटक, खूब हुए शिक्षक आंदोलन
चंडीगढ़ : शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट। सुविधाओं में इजाफा नहीं। स्कूलों में बच्चों की संख्या घटी। ढांचागत विकास अवरुद्ध। जायज हकों के लिए शिक्षकों के आंदोलन पर आंदोलन। इस साल शिक्षा के क्षेत्र की यही हकीकत रही। शिक्षा निदेशालय पूरा वर्ष स्थायित्व के लिए तरसता रहा। सेकेंडरी शिक्षा के पांच और मौलिक शिक्षा के चार महानिदेशक साल भर में बदले गए। शिक्षा के सुधार के लिए बातें तो बहुत हुईं पर धरातल पर अमल देखने को नहीं मिला।
केंद्र हो या प्रदेश सरकार, दोनों ने ही शिक्षा के बजट में कटौती की। पंद्रह सौ से अधिक सरकारी प्राथमिक स्कूल सुविधाओं के अभाव में बंद होने के कगार पर पहुंच गए हैं। स्कूलों में बच्चों की संख्या न के बराबर है। मिडिल, हाई और सीनियर सेकेंडरी स्कूलों की स्थिति भी चालू साल में बहुत बेहतर नहीं हुई। यमुनानगर, भिवानी और कैथल जिले में स्कूलों को भवन मुहैया कराने के दावों पर तनिक भी अमल नहीं हुआ। शिक्षा का अधिकार कानून भी पूर्व हुड्डा और वर्तमान भाजपा सरकार पूरी तरह से लागू नहीं कर पाई। कानून में कुछ विसंगतियां होने से शिक्षा का स्तर ऊपर उठने के बजाए नीचे गिर गया। व्यवस्था पहले भी पटरी से उतरी हुई थी और अब भी बेपटरी है। निजी कंपनियों की बढ़ती दखलअंदाजी से शिक्षा का निजीकरण 2014 में और बढ़ा। शिक्षा मंत्रियों और शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों के बीच छत्तीस का आंकड़ा होना भी शिक्षा पर भारी पड़ा। 9870 जेबीटी की नियुक्ति भी अंगूठा जांच के फेर में फंसी रही। गेस्ट टीचर्स पूरा साल पक्का होने के लिए आंदोलनरत रहे। कंप्यूटर टीचर्स ने निजी कंपनियों से छुटकारा पाने के लिए धरने से लेकर आमरण अनशन तक किया, लेकिन न तो कंपनियों से निजात मिली, न ही वेतन और सिक्योरिटी राशि। पात्र अध्यापक और लैब सहायक भी समय-समय पर आवाज बुलंद करते रहे, लेकिन उम्मीदें पूरी नहीं हुई।
शिक्षा का स्तर गिरने का बढ़ा खतरा 
शिक्षाविद् वजीर सिंह कहते हैं कि शिक्षा के हितों रक्षा करने वाला कोई नहीं। पूर्व सरकार हो या वर्तमान सरकार सबने ठगा है। बातों से आगे कुछ नहीं हुआ। वर्तमान सरकार के शुरुआती कार्यकाल को देखते हुए शिक्षा पर संकट और बढ़ता दिख रहा है। शिक्षा का काम वैज्ञानिक दृष्टिकोण बनाना है, लेकिन काम उल्ट दिशा में चल रहा है। लगभग दस प्रतिशत शिक्षक भी शिक्षा का बंटाधार करने के लिए जिम्मेदार हैं।शिक्षाविद् वजीर सिंह कहते हैं कि शिक्षा के हितों रक्षा करने वाला कोई नहीं। पूर्व सरकार हो या वर्तमान सरकार सबने ठगा है। बातों से आगे कुछ नहीं हुआ। वर्तमान सरकार के शुरुआती कार्यकाल को देखते हुए शिक्षा पर संकट और बढ़ता दिख रहा है। शिक्षा का काम वैज्ञानिक दृष्टिकोण बनाना है, लेकिन काम उल्ट दिशा में चल रहा है। लगभग दस प्रतिशत शिक्षक भी शिक्षा का बंटाधार करने के लिए जिम्मेदार हैं।
इस वर्ष हुए बड़े आंदोलन

  • गेस्ट टीचर्स का रोहतक में 91 दिन तक महाधरना
  • 8 फरवरी को दिल्ली में जंतर-मंतर पर रैली, 24 फरवरी तक आमरण अनशन
  • 8 अगस्त महाआक्रोश रैली रोहतक में, गिरफ्तारियां दी
  • अगस्त से सितंबर तक पंचकूला शिक्षा निदेशालय पर धरना
  • कंप्यूटर शिक्षकों का 25 फरवरी से सात मार्च तक पंचकूला में आमरण अनशन
  • एक जून से आठ अगस्त तक पंचकूला में धरना, पंचकूला से दिल्ली तक पैदल यात्र और आमरण अनशन।
  • शिक्षा विभाग में युक्तिकरण को लेकर शिक्षकों का आंदोलन 
  • ट्रेनिंग नीड असेस्मेंट टेस्ट को लेकर शिक्षकों का धरना-प्रदर्शन                                     dj

      

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