जेल भरो आंदोलन में सभी यूनियनों की सक्रिय भागीदारी सरकार के लिए गंभीर चुनौती पैदा करने वाली है। हो सकता है निकट भविष्य में किसी बड़े आंदोलन का सूत्रपात हो जाए, यदि ऐसा हुआ तो नई नवेली सरकार के कामकाज व योजना क्रियान्वयन में अवरोध खड़े हो सकते हैं। अपनी लंबित मांगें पूरी करवाने के लिए हर जिला मुख्यालय पर कर्मचारियों ने बड़ी संख्या में गिरफ्तारी दी, सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी हुई , रास्ता जाम किया, प्रदर्शन के दौरान पुलिस से नोकझोंक और कई जिलों में टकराव की स्थिति पैदा हुई और पांच घंटे तक कामकाज ठप रहा। कर्मचारियों ने अपने विरोध प्रदर्शन को सत्याग्रह का नाम दिया और सबसे अहम पहलू यह है कि सभी कर्मचारी यूनियनें, संघ और संगठन एक मंच पर एकत्र हुए। पिछले अनुभवों को देखते हुए सरकार को इस बारे में अपनी रीति, नीति और रणनीति को मुस्तैद करने के लिए कमर कस लेनी चाहिए। हरियाणा में भाजपा की सरकार पहली बार बनी है इसलिए इसे कर्मचारी या किसान आंदोलनों से निपटने के लिए स्वाभाविक तौर पर अपरिपक्व कहा जा रहा है। पिछले दिनों बावल औद्योगिक क्षेत्र के लिए भूमि अधिग्रहण मुद्दे पर सरकार ने किसानों के विरोध को देखते हुए अपना आदेश वापस लेने में जरा भी देरी नहीं की। जल्दबाजी में लिए गए इस निर्णय को परिपक्व इसलिए नहीं माना जा सकता क्योंकि सुगबुगाहट है कि सरकार यू-टर्न लेते हुए अध्यादेश अधिसूचना को निरस्त करने का आदेश वापस लेने पर विचार कर रही है। इसके साथ ही वह कर्मचारी आंदोलन पर जल्दबाजी में कोई निर्णय भी नहीं लेना चाहती। अब चुनौती यह है कि अनुभवहीनता कहीं समस्या को विकराल रूप न दे दे। कर्मचारियों की मांगों की फेहरिस्त काफी लंबी है, इसमें से तात्कालिक सरोकार रखने वाली और खजाने पर न्यूनतम बोझ डालने वाली मांगों को पहले स्वीकार कर सरकार को ऐसी सकारात्मक पहल करनी चाहिए जो कर्मचारियों का विश्वास जीत सके, वार्तालाप के लिए सकारात्मक माहौल तैयार हो। न्यूनतम वेतन 15 हजार करने, पंजाब के समान वेतनमान, भूमि अधिग्रहण अध्यादेश वापस लेने, मिड-डे मील व आशा वर्करों को स्थायी कर्मचारी का दर्जा देने के अलावा दस अन्य मांगों पर कर्मचारियों की एकजुटता व परिणति तक पहुंचने की उत्कंठा वास्तव में सरकार की परेशानियां बढ़ाने वाली है, इससे पहले कि हालात अनियंत्रित, असुखद हों, सरकार सक्रियता दिखा कर कर्मचारियों को विश्वास में लेने का दायित्व पूरा करे। djedtrl
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