राज्य सरकार की नीतिगत शिथिलता और निर्णय लेने में अक्षमता के कारण कर्मचारियों के तेवर फिर चिंता का कारण बन सकते हैं। 26 फरवरी को नए सिरे से आंदोलन की शुरुआत करते हुए कर्मचारी राज्यभर में गिरफ्तारियां देकर अपने रोष का इजहार करेंगे। पंजाब के समान वेतनमान देने की घोषणा और इसके लिए तार्किक आधार तलाशने-बनाने के लिए वेतन विसंगति आयोग का गठन करके सरकार ने यह तो दर्शाने की कोशिश की कि वह कर्मचारियों की मांगों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखती है और समाधान करने के प्रति भी गंभीर है पर सबसे बड़ी विसंगति यह है कि कोई समयबद्ध कार्यक्रम घोषित करने में वह अब तक कामयाब नहीं हो पाई। इससे भ्रम का दायरा लगातार विस्तारित हो रहा है। वेतन विसंगति आयोग के गठन के तरीके पर भी कर्मचारी संघों की असहमति है। बात केवल लिपिकीय वर्ग के कर्मचारियों की नहीं की जा रही बल्कि रोडवेज तथा कुछ अन्य विभागों के कर्मचारियों में भी सरकार के प्रति विश्वास के भाव में कमी स्पष्ट परिलक्षित हो रही है। पंजाब के समान वेतनमान के मुद्दे पर पिछली और वर्तमान सरकार के दृष्टिकोण में विशाल अंतर रहा है।
पिछली कांग्रेस सरकार ने जाते-जाते आनन-फानन में पंजाब के समान वेतनमान देने की घोषणा की थी लेकिन तार्किक परिणति की राह नहीं सुझाई गई थी। संभवत: उसे अहसास था कि कहने और करने में जमीन-आसमान का अंतर है, इसी कारण दशकों से उठ रही मांग को लगातार दो कार्यकाल मिलने के बावजूद अंतिम महीनों तक लटकाए रखा गया। मुद्दे की गंभीरता का अहसास नई सरकार को भी है, वह हर कदम फूंक-फूंक कर रखना चाहती है, इसी वजह से वेतन विसंगति आयोग का गठन करके उसने सभी कमजोर या मजबूत पहलुओं को खंगालने का सिलसिला आरंभ किया है। तमाम कवायद के बीच सरकार को इस बात का भी संज्ञान लेना होगा कि कर्मचारियों की मांगों को अधिक समय तक लटकाए रखना उसकी साख और विश्वसनीयता के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। मंथन की प्रक्रिया को तेज करने तथा व्यावहारिक-तार्किक समाधान तक जल्द पहुंचने की जरूरत है। कर्मचारियों को सामने बैठा कर सबसे पहले तो सरकार को उनका विश्वास जीतना होगा, अपनी नीतिगत प्रक्रिया में अधिकतम पारदर्शिता लाने के साथ उसकी प्रगति की रिपोर्ट से उन्हें निश्चित-नियमित अंतराल पर अवगत करवाना चाहिए। dt
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