शिक्षा क्षेत्र को नया रूप देने की प्रतिबद्धता सरकार बार-बार दिखा रही है। अनेक खामियां उसके संज्ञान में लाई जा चुकीं और कारगर, तार्किक सुझाव भी प्रेषित किए जा चुके लेकिन अभी तक स्थिति उत्साहजनक नहीं बन पाई। गेस्ट टीचर, फिर जेबीटी टीचर के नियोजन-समायोजन के प्रति तार्किक निर्णय तक नहीं पहुंचा सका इसका प्रमाण यह है कि शिक्षकों के हजारों पद रिक्त होने के बावजूद केवल आश्वासनों से काम चलाया जा रहा है। शिक्षकों के इतर तस्वीर का दूसरा रूप यह है कि विद्यार्थियों के लिए भी विभाग का विजन स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा। नियम 134 ए के साथ गरीब बच्चों का भी उपहास उड़ाया जा रहा है। निजी स्कूलों में उन्हें निश्शुल्क दाखिला दिलाने के अपने वादे से मुंह मोड़ते हुए पहले मूल्यांकन परीक्षा की शर्त लगाई गई और अब स्थिति कोढ़ में खाज जैसी हो चुकी। 30 अगस्त को मूल्यांकन परीक्षा ली गई थी लेकिन 12 हजार बच्चों का परिणाम अब तक घोषित नहीं किया गया। ऐसी कौन सी अड़चन आ गई कि तीन माह से रिजल्ट रोक कर बच्चों के साथ उनकी गरीबी का क्रूर तरीके से मजाक उड़ाया जा रहा है। विभाग कहता है कि परिणाम तैयार है, तब तो यह उदासीनता और भी गंभीर व दंडनीय मानी जानी चाहिए।
परीक्षा इससे पूर्व भी ली जा चुकी है, विभाग की ओर से स्कूलों का आवंटन भी कर दिया गया लेकिन 80 प्रतिशत से अधिक बच्चों को दाखिला नहीं दिया गया, जिन्हें मिला उनसे कुछ समय बाद फीस मांगी जाने लगी थी। सरकार व शिक्षा विभाग को तमाम वास्तविकताओं का आकलन करते हुए स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। व्यापक संदर्भो में आशंकाओं और सवालों का जवाब दिया जाना चाहिए। अहम सवाल है कि क्या सरकार नियम 134 ए को जारी रखना चाहती है? यदि हां तो 12 हजार गरीब बच्चों का परिणाम तत्काल घोषित करके उनके निश्शुल्क दाखिले का बंदोबस्त करे। हालांकि सत्र के बेशकीमती तीन माह बर्बाद हो चुके और वार्षिक परीक्षा में अधिक समय शेष नहीं बचा। उनका पाठ्यक्रम पूरा करवाने के लिए विशेष व्यवस्था होनी चाहिए। सरकार नियम जारी रखने की इच्छुक नहीं तो इसकी घोषणा में भी विलंब न करे ताकि गरीब बच्चे विभाग की ओर ताकते न रहें। घोषणा और अमल में तीव्र विरोधाभास की पिछली सत्ता की परछाई बनने से नई सरकार को बचना चाहिए तभी उसकी साख और विश्वसनीयता कायम रह सकेगी। नीति व नियम स्पष्ट, पारदर्शी हों, मामला उलझाने या टरकाने से सभी की पीड़ा बढ़ती है। dj
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