** आरटीई के तहत पहले सरकारी और अनुदान प्राप्त स्कूलों में ही एडमिशन
चंडीगढ़ : शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत गरीब परिवारों के बच्चों को 25 फीसदी दाखिला प्राइवेट स्कूलों में मिलना असंभव है। मौलिक शिक्षा निदेशक आरएस खर्ब ने सभी जिला मौलिक शिक्षा अधिकारियों को पत्र जारी कर कहा है कि दाखिला पहले सरकारी व अनुदान प्राप्त गैर सरकारी स्कूलों में दें। अगर उनमें सीटें न हुईं तो निजी स्कूलों का नंबर लगेगा।
आरटीई एक्ट के तहत सरकार ने जो रूल्स बनाए थे, उनके अनुसार पहली से आठवीं कक्षा तक गरीब परिवारों के बच्चों को दाखिला देना था। मगर एक अदालती फैसले के कारण पिछले साल उसमें परिवर्तन कर दिया और यह दाखिला पहली या उससे नीचे की कक्षा तक सीमित कर दिया था। सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत बने नियम सात में नया उप नियम नंबर 7 जोड़ा था। पहले छह उपनियम थे। रूल 7 गरीब वर्ग के बच्चों के दाखिले से संबंधित है। रूल सात में जोड़े गए सब रूल 7 में प्रावधान किया गया है कि गरीब बच्चों का दाखिला केवल पहली कक्षा में होगा।
प्रतिपूर्ति पर भी लगा अड़ंगा
मौलिक शिक्षा निदेशक आरएस खर्ब ने जो पत्र जारी किया है उसमें साफ लिखा कि अगर ऐसे बच्चों को प्राइेवट स्कलों में दाखिला दिया गया तो उनकी फीस की प्रतिपूर्ति अदालत में लंबित मामले के अंतिम निर्णय से प्रभावित होगी।
इसलिए निजी स्कूलों में प्रवेश कठिन
जिस बच्चे को दाखिला दिलवाना है, उसके लिए जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी को आनलाइन या आफलाइन आवेदन करना होगा। जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी वे आदेन सरकारी और अनुदान प्राप्त स्कूलों में भेज देंगे। अगर सरकारी और अनुदान प्राप्त स्कूल में सीट नहीं होगी तो अभिभावक मौलिक शिक्षा अधिकारी के पास विशेष प्राइवेट स्कूल में दाखिले का आवेदन करेंगे। तब जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी ड्रा निकालकर दाखिले के लिए संबंधित स्कूल को नाम भेजेंगे। चूंकि सरकारी और अनुदान प्राप्त स्कूलों में सीटें उपलब्ध न होना असंभव है इसलिए गरीब बच्चों का दाखिला निजी स्कूलों में असंभव है।
कोर्ट ने ये दिया था फैसला
हाईकोर्ट ने पिछले साल एक अप्रैल को फैसला सुनाया था कि आरटीई के तहत निजी स्कूलों में गरीब बच्चों को 25% सीटों पर दाखिला सुनिश्चित किया जाए न कि हरियाणा स्कल एजूकेशन रूल्स के रूल 134 ए के तहत। कक्षा दो से 12वीं तक 134 के तहत दाखिला दिया जाए। hb
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