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Tuesday, 29 March 2016

शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर ‘कैग’ ने उठाये सवाल

चंडीगढ़ : हरियाणा शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली को लेकर ‘कैग’ ने गंभीर सवाल उठाये हैं। नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की ताजा रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि अयाेग्य विद्यार्थियों को दी गई 2.51 करोड़ रुपये की वज़ीफा राशि की वसूली के हाईकोर्ट द्वारा विभाग को दिए गए आदेश पर अधिकारी 4 साल बीत जाने के बाद भी अमल करने में विफल रहे हैं।
क्या है मामला
राज्य सरकार ने गरीबी रेखा से नीचे और पिछड़ा वर्ग से जुड़े कक्षा एक से 12वीं तक के स्कूली बच्चों के कल्याण के लिए मार्च 2009 में मासिक स्टाइपेंड देने की योजना शुरू की थी। मामला तब कानूनी पेंच में फंस गया जब यह सामने आया कि कई अयोग्य व्यक्तियों ने बीपीएल कार्ड बनवा कर सरकारी योजनाओं का लाभ उठाया है। ग्रामीण विकास विभाग के तत्कालीन संयुक्त निदेशक ने 23 नवंबर 2011 को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में शपथपत्र देकर यह विश्वास दिलाया था कि गलत सूचना देकर बीपीएल कार्ड बनवाने वाले सभी लोगों के कार्ड रद्द किए जाएंगे और उपायुक्तों को ऐसे लोगों द्वारा ली गई सुविधाओं और छूटों से जुड़ी राशि की वसूली के लिए कहा जाएगा। इतना ही नहीं, यदि यह लाभ लेने वाला व्यक्ति मौजूद नहीं रहता तो बीपीएल कार्ड का प्रयोग करने वाले या अपात्र व्यक्ति का कार्ड बनाने वाले कर्मी से यह वसूली होगी। ऐसे मामलों में कानूनी कार्रवाई करने का आश्वासन भी दिया गया था। 25 नवंबर 2011 को हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए 3 माह के भीतर वसूली करने के आदेश दिए थे और 31 मार्च 2012 तक अनुपालन रिपोर्ट जमा कराने के लिए भी कहा था।
शिक्षा विभाग की ढुलमुल कार्यशैली
हाईकोर्ट के 3 माह में कार्रवाई करने के आदेश पर शिक्षा विभाग 8 माह तक तो चुप रहा। फिर अक्तूबर 2013 में माध्यमिक शिक्षा निदेशालय ने सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को आदेश दिए कि उन सभी बीपीएल श्रेणी के अपात्र मुखियाओं के बारे में सूचनाएं दें जिनके बच्चों ने स्टाइपेंड लिए हैं। इस आदेश पर भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। आज विधानसभा में 31 मार्च 2015 को समाप्त हुए वर्ष के लिए पेश कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षा विभाग और नमूना जांच में शामिल किए गए 5 जिलों-जींद, कैथल, पंचकूला, भिवानी और रेवाड़ी से जुड़े दस्तावेजों से स्पष्ट हुआ है कि 2009-13 की अवधि में 7,745 अपात्र छात्रों ने 2.51 करोड़ रुपये का वज़ीफा हासिल किया। कैग ने अधिकारियों के कामकाज पर सवाल उठाते हुए टिप्पणी की है कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी 4 साल तक राशि की वसूली न होने से यह संकेत मिलता है कि शिक्षा विभाग में सख्त आंतरिक नियंत्रण प्रणाली की कमी है। कैग की रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख है कि शिक्षा विभाग ने पिछले साल सितंबर में यह बताया कि समय-समय पर जिला शिक्षा अधिकारियों को अयोग्य छात्रों से राशि वसूलने के आदेश दिए जाते रहे हैं। मामले में उपेक्षा बरतने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों और कर्मियों के बारे में विभाग का कहना है कि अनुशासनिक कार्रवाई की जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव के नोटिस में जुलाई 2015 में मामला लाया गया था और सितंबर महीने में रिमाइंडर भी भेजा गया लेकिन अभी तब जवाब नहीं आया।                                 dt

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