719 अतिथि अध्यापकों को बर्खास्त करने के सेकेंडरी शिक्षा महानिदेशक के आदेश पर रोक लगा कर शिक्षा मंत्री ने तात्कालिक राहत तो प्रदान कर दी पर इसके लिए नवगठित सरकार को ठोस व तार्किक आधार तैयार करने पर गहन मंथन आरंभ कर देना चाहिए। इसे सामान्य या सहज समस्या के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। वास्तविक मसला कुल पंद्रह हजार अतिथि अध्यापकों के भविष्य के साथ सीधे जुड़ा है। 719 का विशेष तौर पर जिक्र इसलिए किया जा रहा है क्योंकि इन सबकी नियुक्ति 2005 में हुई थी और अदालत में इसे दो वर्ष पूर्व ही अवैध ठहराया जा चुका है। कार्रवाई तो उन अफसरों के खिलाफ भी होगी जिन्होंने इनकी भर्ती के समय मानकों का अनुपालन सुनिश्चित नहीं किया था। अहम सवाल यह भी सामने आ रहा है कि सेकेंडरी शिक्षा निदेशालय के आदेशों को एक दिन बाद ही शिक्षा मंत्री को रद क्यों करना पड़ रहा है? दोनों के बीच समन्वय का इतना लोप क्यों दिखाई दे रहा है? क्या शिक्षा निदेशालय ने गेस्ट टीचरों की सेवाएं समाप्त करने का आदेश जारी करने से पहले शिक्षा मंत्री से सहमति या अनुमति नहीं ली थी? दोनों में इस कदर विरोधाभास से सरकार के प्रति आमजन की भावना और धारणा सकारात्मक तो नहीं रह जाती। पहले नीतिगत विचार-विमर्श करके एक राय बननी चाहिए, उसके बाद ही कोई आदेश जारी हो, यही आदर्श स्थिति है जो सरकारी कार्य संचालन को सुगम बनाती है। इन गेस्ट टीचर की विशेष याचिका भी खारिज हो चुकी तो सरकार को इन्हें अभयदान देने के आधार पर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। पिछली कांग्रेस सरकार अतिथि अध्यापकों को वर्षो तक झांसे में रखती रही पर कार्यकाल के अंतिम दिनों में पल्ला झाड़ लिया जिससे स्पष्ट हो गया था कि इनकी सेवाएं जारी रखने या इन्हें नियमित करने का न्यायसम्मत आधार उसके पास नहीं था। अदालतों में अतिथि अध्यापकों को राहत नहीं मिली, बताया जाना चाहिए कि नई सरकार ने जिस विश्वास के साथ इनकी बर्खास्तगी पर रोक लगाने का निर्णय किया है, उसे बनाए रखने के लिए जिस पेशबंदी की जरूरत है, क्या वह उसके पास है? दो टूक अपेक्षा यह है कि गेस्ट टीचर को अंधेरे में न रखा जाए। उनकी पीड़ा को संजीदगी से महसूस करने की आवश्यकता है। पंद्रह हजार अतिथि अध्यापक इस समय अधर में हैं। उन्हें अंधेरे से उजाले की ओर लाने के लिए ठोस कानूनी आधार से ही काम चलेगा, राजनीतिक इच्छाशक्ति के भरोसे कोई कदम न उठाया जाए। djedtrl
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