कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आरंभ की गई बीस हजार भर्तियों की प्रक्रिया रद किए जाने से आभास हो रहा है कि सरकार अनिश्चय की स्थिति में है, स्पष्ट निर्णय लेने में विलंब करना किसी भी सूरत में सकारात्मक तो कतई नहीं कहा जा सकता। हाल ही में सरकार ने जोर-शोर से एलान किया था कि 47 हजार नई भर्तियां की जाएंगी और प्रक्रिया को यथाशीघ्र पूरा करने की भरसक कोशिश रहेगी। इस बात का सभी को गंभीरता से अहसास तो है कि कर्मचारियों की कमी से शिक्षा, पुलिस, स्वास्थ्य समेत अनेक विभागों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है पर विडंबना भी है कि दशकों से रिक्त पदों को भरने के संजीदगी से प्रयास कभी नहीं हुए। नई सरकार के एलान से उम्मीद बंधी थी कि तस्वीर बदलेगी परंतु नए निर्णय से एक बार फिर विरोधाभास की स्थिति पैदा होने की संभावना बनती लग रही है। जिन पदों के लिए प्रक्रिया रोकने की बात कही गई है, उनमें हजारों पद ऐसे हैं जिनके लिए प्रक्रिया पूर्ववर्ती सरकार के समय ही आरंभ हो चुकी थी और कई के लिए तो साक्षात्कार तक पूरे किए जा चुके। नए संदर्भ में चिंतनीय बात यह भी है कि हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग के चेयरमैन और सदस्यों की नियुक्ति लगातार टल रही है, स्वाभाविक है कि नई भर्ती प्रक्रिया जल्द शुरू होने की कोई उम्मीद नहीं। सरकार के लिए यह कहना किसी हद तक सही माना जा सकता है कि पहले नियुक्ति प्रक्रिया में ढेरों खामियां थीं जिस कारण अनेक मामलों में अदालत के आदेश पर नियुक्तियां रद हुईं इसलिए प्रक्रिया को उसी रूप में जारी नहीं रखा जा सकता, पर साथ ही अहम सवाल यह भी है कि उन खामियों को दुरुस्त करते हुए प्रक्रिया को जल्द पूरा करने में विलंब क्यों किया जा रहा है? विभागीय कामकाज सही समय पर निपटाना हर सरकार की पहली प्राथमिकता होती है, इस दायित्व को पूरा करने के स्थान पर यदि पूर्व की कमी-कमजोरियों को कोसने में ही समय बर्बाद किया जाए तो यह उचित नहीं। माना कि नई सरकार को गठित हुए सौ दिन हो चुके लेकिन प्रशासकीय दायित्व निभाने की जिस प्रतिबद्धता की अपेक्षा थी वह अभी दिखाई नहीं दे रही। गुड गवर्नेस के अपने वादे पर खरा उतरते हुए सरकार को भर्ती संबधी भ्रांतियों को दूर करते हुए अपने स्टैंड को स्पष्ट करना होगा। उसकी नीति और नीयत पर किसी को संदेह नहीं लेकिन विलंब स्वयं कई सवालों का जनक है। djedtrl
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