चंडीगढ़ : लोकसभा चुनाव में सरकारी कर्मचारियों की भी अहम भूमिका रहेगी। प्रदेश में तीन लाख पक्के व एक लाख कच्चे कर्मचारी हैं। लिहाजा सभी दल कर्मचारियों को जोड़ने में लगे हुए हैं।
मालूम हो कि सरकारी-अर्ध सरकारी, बोर्ड, निगमों, विश्वविद्यालयों, नगर निगमों, नगर पालिकाओं, नगर परिषद कार्यालयों में कार्यरत कर्मचारियों का कहना है कि वे उसी दल पर भरोसा जताएंगे, जो उनकी मांगों को पूरा करने का वादा करेगा। कर्मचारियों की दर्जन भर से अधिक छोटी-बड़ी मांगें हैं, जिन्हें एक साथ पूरा करना किसी भी दल के लिए आसान नहीं है। कर्मचारी बीते समय में संघर्षरत भी रहे हैं, जिसकी बदौलत उनकी अनेक मांगें पूरी भी हुई हैं। कर्मचारियों से जुड़े कुछ मसले नीतिगत हैं, जिन्हें एकदम पूरा करना किसी के वश की बात नहीं। चुनाव में राजनीतिक दल भले ही अपने फायदे के लिए कर्मचारियों को लोकलुभावन आश्वासन दे रहे हों, पर वादे करने से पहले उन्हें सोचना जरूर होगा।
हरियाणा कर्मचारी तालमेल कमेटी के सदस्य धर्मवीर फौगाट व सुभाष लांबा कहते हैं कि 4 लाख कर्मचारी कम से कम 40 लाख मतदाताआंे को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए किसी भी दल को उन्हें नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है। कर्मचारी संगठित होकर ठेकाकरण, आउटसोर्सिग की नीतियों के खिलाफ आंदोलनरत हैं। कमेटी दो वर्ष की सेवा पूरी कर चुके तमाम प्रकार के कच्चे कर्मचारियांे को बिना शर्त पक्का कराने, ठेका प्रथा को समाप्त करने, विभागों में खाली पड़े लाखों पदो को स्थायी भर्ती से भरवाने, 15 हजार रुपये न्यूनतम वेतनमान लागू कराने के लिए प्रयासरत है। उन्हें उम्मीद है कि संघर्ष एक दिन रंग जरूर लाएगा। राजनीतिक दलों को उनकी मांगों पर गंभीरता से गौर करना चाहिए ताकि उन्हें जायज हक मिल सके।
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