वर्दी का पैसा वहन करती है सरकार
प्रदेश सरकार आर्थिक रूप से कमजोर और गरीब बच्चों को पहली कक्षा से आठवीं कक्षा तक वर्दी भत्ता देती है। ये भत्ता इसलिए दिया जाता है कि बच्चे कांवेंट स्कूलों की तर्ज पर टाई लगाकर स्कूल पहुंचे और उनकी ड्रैस भी ठीकठाक दिखे। लेकिन महज 400 रूपये में क्या बढि़या टाई बेल्ट और वर्दी खरीदी जा सकती है?
यही वजह है कि आज भी ज्यादातर सरकारी स्कूलों के बच्चे न तो टाई पहनते हैं और न ही उनकी वर्दी सही तरीके से बनी होती है। किसी के पास जूते और जुराबें नहीं है, तो कोई सर्दी में अपने पैसे से स्वेटर खरीदने को मजबूर है।
इन बच्चों की मिल रही है सुविधा
प्रदेश में पहली से पांचवीं कक्षा तक करीब 13 लाख 8 हजार 928 बच्चों को ये सुविधा मिल रही है। इसी तरह छठी से आठवीं कक्षा तक के करीब 6 लाख 70 हजार 892 बच्चों को वर्दी भत्ता दिया जा रहा है।
अभिभावकों-शिक्षकों की कमेटी तय करती है ड्रैस कोड
खास बात यह भी है कि प्रदेश के सभी स्कूलों में एक जैसा ड्रैस कोड नहीं है। स्कूल में ड्रैस कोड सरकार तय नहीं करती है। किस स्कूल में वर्दी कैसी होगी, यह फैंसला गांव स्तर पर बनी कमेटी करती है। इस कमेटी में गांव के मुखिया के अलावा अभिभावक और स्कूल स्टाफ शामिल होता है। यही कमेटी वर्दी भत्ते के आबंटन की देखरेख करती है। प्रदेश के कई स्कूलों का हाल यह है कि यहां बच्चों को एक साल में पेंट-शर्ट ही मिल पाती है। अगले साल उसे जूते व जुराब दिये जाते हैं और तीसरे साल मे जाकर छात्र को जर्सी (बनियान) मिल पाती है। प्रदेश का शायद ही कोई स्कूल होगा जहां टाई मुहैया करायी जा रही हो।
1500 रुपये में बनती है एक वर्दी
अब ज़रा इस पर भी गौर करें कि जो पैसा सरकार दे रही है, उसमें अगर स्कूल प्रबंधन अपना कपड़ा खरीद कर भी वर्दी बनवाए तो भी मुश्किल से पेंट-शर्ट ही तैयार हो पायेगी। सामान्य श्रेणी के प्राइवेट स्कूल में एक बच्चे की पूरी वर्दी पर करीब एक हजार रूपये से 1500 रूपये तक खर्च आता है। अगर स्कूल उच्च श्रेणी का है, तो वर्दी पर खर्च 2500 रूपये से 4000 हजार तक बैठता है। यहां गर्मी के लिये अलग तो सर्दी के मौसम के लिये भी अलग -अलग वर्दी बनती है। लेकिन सरकारी स्कूल में ऐसा कोई नियम नहीं है। यहां एक ही वर्दी के लिए पैसा मिलता है और सर्दी का इंतजाम अपने स्तर पर करना होता है। dt
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