फरीदाबाद : चुनाव आयोग की ओर से सरकारी स्कूलों के टीचर की सेवाएं वोट बनाने के लिए ली गई हैं, इससे स्कूलों में बच्चाें की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। हाल ही में प्रथम सेमेस्टर के खराब परीक्षा परिणाम ने शिक्षकों के साथ अभिभावकों की चिंता भी बढ़ा रखी है। अभिभावकों को आशंका है कि शिक्षकों का गैर शैक्षणिक कार्यों में लगाया जाना कहीं फिर से स्कूलों में पिछड़े परीक्षा परिणाम की वजह न बन जाए। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी पहले ही पढ़ाई प्रभावित कर रही है। वहीं टीचरों को बाहरी तमाम जिम्मेदारियां सौंपने से स्कूल में शिक्षकों की संख्या और भी कम रह जाती है। अब बचे हुए टीचर भला किस तरह कोर्स को निपटाएं और बच्चों को परीक्षा की तैयारी कराएं। टीचर्स के मुताबिक कई बार मांग उठाए जाने के बावजूद कोई लाभ नहीं मिला। ड्यूटी निभाना और साथ में बच्चों को पढ़ाना संभव नहीं है।
तालमेल की कमी से आरटीई का उल्लंघन
टीचर्स का कहना है कि शिक्षा के अधिकार (आरटीई) के तहत एलीमेंट्री शिक्षकों की ड्यूटी गैर शैक्षणिक कार्यों में नहीं लगाने का प्रावधान है। वहीं अगर शिक्षक ऐसे किसी भी कार्यों में लगे हैं तो उनसे जिम्मेदारी वापस लेने के भी निर्देश हैं। मगर दूसरी ओर विभाग शिक्षकों को चुनावी जिम्मेदारी सौंपता है। ऐसे में सरकार और विभागों के आपसी तालमेल की कमी से आदेशों का उल्लंघन हो रहा है। जिले के सरकारी स्कूल पहले ही शिक्षकों की भारी कमी से जूझ रहे हैं। ऐसे में शिक्षकों की कमी के बावजूद उन्हें गैर शैक्षणिक कार्यों में लगाया जाना स्कूल में शिक्षा का स्तर बिगाड़ता है।
पढ़ाई पर पड़ता है असर
राजकीय प्राथमिक विद्यालय, अजरोंदा के स्कूल के हेड टीचर चतर सिंह का कहना है कि बीएलओ ड्यूटी के चलते स्कूल में पढ़ाई पर असर पड़ता है। जो शिक्षक ड्यूटी पर जाते हैं उनकी कक्षाओं की जिम्मेदारी दूसरे शिक्षकों को देने से उनका भी काम प्रभावित होता है। दिसम्बर का आधा महीना इसी में गुजर गया है। ऐसे में बीएलओ ड्यूटी के चक्कर में कोर्स भी पिछड़ गया। साल में तीन से चार बार बीएलओ की ड्यूटियां लगाई जाती है। कई बार एक माह तो कई बार 15 दिनों की ड्यूटियां लगाई जाती हैं। dt
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