फरीदाबाद के निजी स्कूल में आठवीं के छात्र द्वारा स्कूल परिसर में पेट्रोल छिड़क कर खुद को आग लगाने का मामला रोंगटे खड़े कर देने वाला है। शिक्षक की मामूली फटकार से आहत होकर आत्मघाती फैसला लेने से गंभीर संकेत मिल रहा है कि बाल मानसिकता निराशावाद और नकारात्मक दिशा की ओर प्रवृत्त हो रही है। ऐसे में बच्चों को मजबूत मनोवैज्ञानिक काउंसिलिंग की जरूरत है। सवाल उभर रहा है कि क्या शिक्षा तंत्र का शुद्ध रूप से मशीनीकरण हो चुका? क्या अभिभावक बच्चों के साथ संबंधों की औपचारिकता निभा रहे हैं? बच्चों में सहनशीलता क्यों घट रही है? मानसिक दृढ़ता का लोप क्यों हो रहा है? स्कूल बैग में आठवीं का बच्चा कोल्ड डिंक की बोतल में पेट्रोल ले आया , यह बात गंभीर चिंता का विषय है। हर बच्चे के बैग में टिफिन, पानी की बोतल या खाने का सामान अवश्य होता है। न अभिभावकों के लिए हर दिन स्कूल बैग चेक करना संभव है,न स्कूल प्रबंधन के लिए। बदलती जीवन शैली और खानपान से बच्चों में असहिष्णुता बढ़ रही है। पहले जैसी आत्मीयता न रखे जाने के कारण भी अभिभावकों से बच्चों के भावनात्मक संबंधों में कुछ अवरोध आया है। इतना सब देखते हुए अभिभावकों और अध्यापकों को अपने अहम दायित्व को और तवज्जो-तरजीह देने की जरूरत आन पड़ी है। फरीदाबाद की घटना से सबक लेते हुए बच्चों को शिक्षा के साथ दायित्वबोध से भी अवगत करवाया जाना चाहिए, मनोवैज्ञानिक तरीकों से उनमें परिपक्वता का भाव लाने के लिए अभियान चलाए जाने की जरूरत है। अभिभावकों और अध्यापकों का एक अहम दायित्व यह भी है कि हर बच्चे की गतिविधियों खास तौर पर उसके आचार-व्यवहार में एकाएक आए बदलाव पर गहन नजर रखनी होगी। यदि बच्चा अत्यधिक संवेदनशील है तो उसे विशेष काउंसिलिंग दी जाए। बच्चे द्वारा घातक निर्णय लेने का यह पहला मामला नहीं। यह जरूरी हो गया है कि सभी स्कूलों में विशेषज्ञ कांउसिलर अथवा मनोवैज्ञानिक की सेवाएं उपलब्ध करवाई जाएं। स्थायी नियुक्ति संभव न हो तो नियमित अंतराल पर इनकेर विशेष शिविर आयोजित किए जाने चाहिए। बच्चों में भटकाव या आत्मघाती प्रवृत्ति पर तत्काल अंकुश लगाने के लिए सभी को समग्र-सामूहिक रूप से आगे आने की पहल करनी होगी। djedtrl
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.