अतिथि अध्यापकों का मुद्दा नई सरकार की अग्निपरीक्षा लेने को तैयार है। भूपेंद्र हुड्डा सरकार ने मसले के स्थायी समाधान में तनिक भी रुचि नहीं दिखाई, रबर की तरह इसे खींचते-खींचते कार्यकाल पूरा कर लिया और गेंद नई सत्ता के पाले में डाल गई। सरकार बदलने के बाद इस दिशा में कारगर पहल हुई हो, ऐसा कोई संकेत अब तक दिखाई नहीं दिया। अब हाई कोर्ट के ताजा आदेश से हो सकता है उसकी तंद्रा भंग हो जाए। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को अवमानना नोटिस भेजा है जिसमें पूछा गया कि नियमित टीचरों की भर्ती के बाद भी गेस्ट टीचरों को क्यों नहीं हटाया जा रहा? नोटिस का आधार यह है कि सरकार ने हाई कोर्ट के साथ सुप्रीम कोर्ट में भी हलफनामा दिया था कि नियमित टीचरों की नियुक्ति के बाद वह गेस्ट टीचरों को सेवा में नहीं रखेगी। दोनों अदालतों का भी स्पष्ट आदेश था कि गेस्ट टीचरों को नियमित न करके नियमित टीचरों की नियुक्ति की जाए और प्रक्रिया पूरी होते ही अतिथि अध्यापकों को सेवामुक्त किया जाए। अब अहम सवाल है कि सरकार किस तरह अपने दायित्व और जवाबदेही को पूरा करती है? क्या अतिथि अध्यापकों के समायोजन के लिए ठोस पहल का आधार तैयार कर लिया गया है? क्या वह पहले की तरह लटकाऊ-टरकाऊ नीति का ही अनुसरण करेगी? इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि 15 हजार गेस्ट टीचर उम्मीद भरी नजरों से ताक रहे हैं, उनके हजारों परिजनों का वर्तमान और भविष्य अधर में लटका है। 1 इतने अधिक लोगों की उम्मीदों को तोड़ना किसी सत्ता के लिए संभव नहीं। देखना यह है कि कोर्ट के फैसलों के मद्देनजर अब असंभव से लगने वाले कार्य को संभव बनाने के लिए कौन सी युक्ति निकाली जाती है? नियोजन या समायोजन के लिए सामान्य प्रबंधों से कुछ नहीं होने वाला, भगीरथी प्रयास के लिए कितनी गंभीरता दिखाई जाती है? राजकीय स्कूलों में अध्यापकों के लगभग बीस हजार पद रिक्त हैं, भर्ती प्रक्रिया जारी है लेकिन कुछ अटकलें उसका प्रवाह रोक रही हैं। गेस्ट टीचरों की भर्ती में मानकों का पालन नहीं हुआ, यह साबित होने पर ही अदालतों ने इन नियुक्तियों को अवैध करार दिया था। नई सरकार यह भाव मन में न रखे कि पिछली खामियों को वह क्यों ढोये। इतनी बड़ी तादाद में गेस्ट टीचर संकट में हैं, उन्हें उबारने के लिए उसे सर्वश्रेष्ठ और अधिकतम प्रयास करने चाहिए। यही उसकी साख और विश्वसनीयता का पैमाना होगा। djedtrl
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