चंडीगढ़ : आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को मुफ्त शिक्षा दिलाने के प्रति शिक्षा विभाग की गंभीरता की पोल खुल गई है। निजी स्कूलों के दबदबे का ही नतीजा है कि ढाई माह पहले बन चुके 12 हजार गरीब बच्चों की मूल्यांकन परीक्षा के रिजल्ट को विभाग अभी तक नहीं निकाल पाया है। इस दौरान विभाग के दो महानिदेशक भी बदल गए, लेकिन कुछ नहीं बदला तो वे गरीब बच्चों का भाग्य है। विभागीय अधिकारी बच्चों के अभिभावकों को आश्वासन देकर ही काम चला रहे हैं।
परिणाम निकालने में ढाई महीने की देरी से गरीब बच्चों की मुफ्त शिक्षा खतरे में पढ़ चुकी है। स्कूलों में इस समय दूसरा समेस्टर शुरू हो चुका है और अब बच्चों को दाखिला दिलाना भी आसान नहीं होगा। चूंकि पूर्व में मूल्यांकन परीक्षा पास कर चुके अनेक बच्चों को न तो निजी स्कूलों ने दाखिला दिया है, न ही उनकी अभी तक फीस माफ की है। इसे लेकर भी अभिभावकों और निजी स्कूलों के बीच विवाद जारी है।
दो जमा पांच मुद्दे जन आंदोलन के अध्यक्ष एडवोकेट सत्यवीर हुड्डा ने शिक्षा मंत्री को बताया कि गरीब परिवारों के बच्चों को कई निजी स्कूल 134 ए का लाभ नहीं दे रहे हैं। स्कूलों में उनकी गरीबी का मजाक उड़ाया जा रहा है। स्कूल आवंटित होने के बावजूद अभी तक दाखिला नहीं मिल पाया है। 30 अगस्त को हुई मूल्यांकन परीक्षा का रिजल्ट अभी तक घोषित न होने से शिक्षा विभाग और निजी स्कूलों की मिलीभगत उजागर हो चुकी है। वे यह जानना चाहते हैं कि किस मजबूरी में ढाई महीने से गरीब बच्चों का रिजल्ट रोका गया है। dj
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