** नई शिक्षा नीति के निर्धारण में स्कूलों की भूमिका सुनिश्चित करने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रलय को मांग पत्र सौंपेगा निसा
नई दिल्ली : देशभर में लागू शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) के
अंतर्गत निजी स्कूलों में अध्ययनरत गरीबी कोटे के विद्यार्थियों को मुफ्त
शिक्षा प्रदान करने के लिए सरकार की ओर से स्कूलों को एक निर्धारित राशि
उपलब्ध कराई जाती है। इस राशि के भुगतान में आ रही परेशानियों और
गड़बड़ियों को देखते हुए अब देश के छोटे पब्लिक स्कूलों के प्रमुख संगठन
नेशनल इंडिपेंडेंट स्कूल्स एलायंस (निसा) ने इस राशि का भुगतान स्कूलों के
बजाय सीधे विद्यार्थियों को करने की मांग की है। निसा नई शिक्षा नीति के
निर्धारण में स्कूलों की भूमिका सुनिश्चित करने के लिए मानव संसाधन विकास
मंत्रलय को मांग पत्र भी सौंपेगा।
रविवार को राजधानी स्थित बीकानेर हाउस
में सेंटर फॉर सिविल सोसायटी के सहयोग से निसा की वार्षिक बैठक संपन्न हुई।
बैठक में शामिल 20 राज्यों के स्कूली संगठनों के प्रतिनिधियों ने स्कूलों
के संचालन में आ रही परेशानियों पर चर्चा की। निसा के प्रतिनिधि अमित चंद्र
ने बताया कि शिक्षा का अधिकार कानून को छात्रों व स्कूलों के हित में लागू
किया गया था, लेकिन इसके बेहद खराब परिणाम सामने आ रहे हैं। उन्होंने
बताया कि कानून में अनियमितताओं के कारण देशभर में लगातार छोटे स्कूल बंद
हो रहे हैं जिसका असर बच्चों के भविष्य पर पड़ रहा है।
इस अवसर पर निसा के
अध्यक्ष आरसी जैन ने कहा कि स्कूल संगठनों की जायज मांगों को लेकर केंद्र
और राज्य स्तर पर उनका संघर्ष जारी रहेगा। उपाध्यक्ष कुलभूषण शर्मा ने
बताया कि मानव संसाधन विकास मंत्रलय द्वारा पूरे देश में नई शिक्षा नीति के
मद्देनजर सलाह लेने की प्रक्रिया जारी है, किंतु इससे प्रभावित होने वाले
स्कूलों व उनके प्रतिनिधियों को ही यह जानकारी नहीं दी जाती है। उन्होंने
बताया कि विचार-विमर्श के दौरान जो प्रश्न पूछे जा रहे हैं उनका जवाब आम
आदमी के द्वारा देना बेहद मुश्किल है। उन्होंने कहा कि एक बेहतर शिक्षा
नीति के लिए जरूरी है कि स्कूलों के प्रतिनिधियों की भागीदारी इसमें
सुनिश्चित हो अन्यथा इसका भी हाल आरटीई के जैसा ही होगा। dj
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