फतेहाबाद: परीक्षा परिणाम खराब आने पर अक्सर शिक्षक बहाने तलाशने शुरू कर
देते हैं। कहीं स्टाफ की कमी का बहाना तो कहीं सरकार की नीतियों को दोष
दिया जाता है। इस बार दसवीं कक्षा का प्रथम सेमेस्टर का परिणाम खराब आया तो
ज्यादातर स्कूलों में स्टाफ की कमी की बात सामने आई। मगर यह तर्क सही नहीं
कि स्टाफ की कमी हो तो रिजल्ट खराब ही आएगा। भट्टूकलां खंड के गांव
सरवरपुर स्थित आरोही माडल स्कूल का परिणाम इस तर्क को गलत ठहराता है कि
स्टाफ की कमी हो तो परिणाम खराब ही आएगा। इस स्कूल में दसवीं व बारहवीं
कक्षा का परीक्षा परिणाम अन्य स्कूलों की अपेक्षा कहीं शानदार रहा है।
यहां स्टाफ की कमी भी नहीं आई आड़े :
आरोही स्कूल में अध्यापकों की कमी भी
थी। लेकिन जो अध्यापक थे, उन्हें ही सभी विषय पढ़ाने का जिम्मा दिया गया।
अध्यापकों की लग्नशीलता और बच्चों का परिश्रम रंग लाया। प्राइवेट स्कूलों
को छोड़ दें तो कोई शायद ही सरकारी स्कूल ऐसा होगा जिसका दसवीं व बाहरवीं
का परिणाम परिणाम 80 फीसदी से अधिक रहा होगा। मगर इस स्कूल का परिणाम 80
प्रतिशत से ज्यादा रहा है।
ये रहा परीक्षा परिणाम
इस स्कूल का परीक्षा
परिणाम वाकई काबिले तारीफ है। दसवीं कक्षा के 43 बच्चों ने बोर्ड की
परीक्षा दी। इस परीक्षा में 36 बच्चे अच्छे नंबर लेकर पास हुए हैं। स्कूल
का दसवीं का परीक्षा परिणाम 83.72 प्रतिशत रहा है। वहीं बारहवीं के बच्चे
भी दसवीं के बच्चों से पीछे नहीं रहे। स्कूल के 37 बच्चों ने परीक्षा दी।
इसमें से 32 बच्चे उत्तीर्ण हुए। स्कूल का बारहवीं का परीक्षा परिणाम 86.48
प्रतिशत रहा। जिन स्कूलों के शिक्षक स्टाफ की कमी होने की बात करते हैं,
उनके लिए इस स्कूल की कार्यशैली प्रेरणादायक है।
बच्चों की मेहनत का नतीजा
अध्यापक सुनील, अंजू व
कश्मीर सिंह ने बताया कि उनके स्कूल का परिणाम संसाधनों की कमी के बावजूद
बेहतर रहा है। स्कूल में कई विषयों के अध्यापक भी नहीं है। लेकिन दसवीं व
बारहवीं के परीक्षा परिणाम पर नजर डालें तो उनके स्कूल का परिणाम कई गुणा
अच्छा रहा है। दसवीं का परिणाम पूरे जिले का 34 प्रतिशत रहा है। लेकिन उनके
स्कूल का परिणाम 80 प्रतिशत से अधिक रहा है। इसके लिए बच्चे बधाई के पात्र
हैं।
इन विषयों के अध्यापक नहीं
स्कूल के ¨प्रसिपल अनिल कुमार की मानें तो
आरोही स्कूल में पूरा साल स्टाफ की कमी बनी रही। लेकिन उन्हें किसी तरह
अध्यापकों का अपने स्तर पर ही इंतजाम किया। इसके लिए शिक्षकों ने टीम की
तरह काम किया। इस स्कूल में फिजिक्स, बायोलोजी, केमिस्ट्री सहित कई अन्य
विषयों के अध्यापक ही नहीं हैं। इसके बावजूद परिणाम अच्छा रहा है। इसके लिए
प्राचार्य स्टाफ को बधाई का पात्र मानते हैं। उनका कहना है कि शिक्षकों ने
खूब मेहनत की है।
"अध्यापकों की कमी बच्चों को कभी भी महसूस नहीं होने दी।
जो भी अध्यापक खाली होता बच्चों को पढ़ाने के लिए बैठ जाता। इसी का नतीजा
सबके सामने है। जो मेहनत हमने की बच्चों ने उसका फल सबको दिया।"-- वसूंभ,
अंग्रेजी अध्यापिका।
"अध्यापक का काम केवल पढ़ाना होता है। असली मेहनत तो
बच्चों को करनी पड़ती है। बच्चों ने खूब मेहनत की है। अगर हर स्कूल में
अध्यापक अपनी जिम्मेदारी निभाएंगे तो परीक्षा परिणाम इससे भी बेहतर आ सकता
है। क्योंकि बच्चे बड़ों से ही सीखते हैं।"-- राजेश, अध्यापक।
"स्कूल में
अध्यापकों की कमी थी। लेकिन जो भी अध्यापक थे, उन्हीं के सहारे काम चलाना
था। इसको लेकर सभी अध्यापकों के साथ बैठक की। इस विषय पर चर्चा के बाद
निर्णय लिया कि जो शिक्षक जिस भी विषय में जानकारी रखता है, वह उस विषय में
सहयोग करेगा। इसके बाद अध्यापकों ने जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश
नहीं की। अध्यापकों की मेहनत का नजीता है कि उनके स्कूल का परीक्षा परिणाम
अन्य स्कूलों की अपेक्षा काफी शानदार रहा है। इसके लिए अध्यापक व बच्चे
बधाई के पात्र हैं।"-- अनिल कुमार, प्राचार्य।
"आरोही सीनियर सेकेंडरी स्कूल का
परीक्षा परिणाम जिस तरह अच्छा रहा है, उसके लिए अध्यापक व बच्चे बधाई के
लिए पात्र हैं। स्कूल में अध्यापकों की भी कमी होने के बावजूद परिणाम अच्छा
रहा है। यदि दूसरे स्कूलों के शिक्षक भी मेहनत करें तो कोई समस्या आड़े
नहीं आ सकती।"-- यज्ञदत्त वर्मा, जिला शिक्षा अधिकारी। dj
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