नई दिल्ली : सातवें वेतन आयोग (सीपीसी) के चेयरमैन और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अशोक कुमार माथुर राजस्थान के जोधपुर में स्थित अपने घर पहुंच गए हैं। उन्होंने दिल्ली में दो साल बिताया और 900 पेज की भारी-भरकम रिपोर्ट तैयार की जिसमें 47 लाख सरकारी कर्मचारियों और 52 लाख पेंशनभोगियों के लिए वेतन, भत्ते और पेंशन में वृद्धि की सिफारिश की है।
हालांकि सरकार ने रिपोर्ट को क्रियान्वित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है लेकिन सरकार को 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का बोझ बर्दाश्त करना पड़ेगा। आज कल माथुर को असंतोष भरे काफी स्वर सुनने को मिलते हैं। वह समाचार पत्रों में शिकायत पढ़ते रहते हैं और फोन कॉलों पर सिविल सरवंट की गहरी चिंता सुनते रहते हैं।
20 विभिन्न क्लास-1 सर्विसेज जैसे इंडियन पुलिस सर्विस, इंडियन रेवेन्यू सर्विस और इंडियन इंफर्मेशन सर्विस पर आधारित कॉन्फेडरेशन ऑफ सिविल सर्विस असोसिएशंस (सीओएससीए) ने इस महीने के शुरू में वित्त मंत्री अरुण जेटली से मुलाकात की। उस मुलाकात का मकसद अपनी उस मांग को सामने रखना था कि सचिवों के एमपावर्ड पैनल में सिर्फ आईएएस का ही वर्चस्व न हो। कैबिनेट द्वारा अंतिम लिए जाने से पहले रिपोर्ट का परीक्षण इसी पैनल को करना है। वे चाहते हैं कि अब तक आईएएस को जो वरीयता मिलती रही है, उसे खत्म किया जाए जिसका सीपीसी के एक सदस्य ने पुरजोर विरोध किया था। इससे सरकार अंतिम निर्णय पर नहीं पहुंच सकी। उसके बाद केंद्र सरकार के मंत्रालयों की रीढ़ की हड्डी समझे जाने वाली सेंट्रल सेक्रटरियट सर्विस आगामी सप्ताह में नॉर्थ ब्लॉक में आंदोलन की योजना बना रही है। इसके करीब 12,000 से ज्यादा कर्मचारी हैं। उनका आरोप है कि कुछ निहित स्वार्थ अधिकारियों ने आयोग को गुमराह किया जिस कारण सीपीसी द्वारा उनके साथ उचित व्यवहार नहीं किया गया है। इसका वे लोग विरोध करेंगे।
वहीं, सशस्त्र बलों के जवानों विशेषकर अधिकारियों ने सार्वजनिक रूप से अपनी अप्रसन्नता जताई है। हालांकि सीपीसी ने उनके वेतन में पर्याप्त रूप से वृद्धि की सिफारिश की है लेकिन कमिशन द्वारा अधिकारियों के लिए शांति वाले क्षेत्रों में मुफ्त राशन खत्म करने की सिफारिश ने उनको ज्यादा आहत किया है।
अगर सरकार सीपीसी की सिफारिशों को क्रियान्वित करने का निर्णय लेती है तो वेतन वृद्धि पर 39,100 करोड़ और भत्तों पर 29,300 करोड़ रुपये का बोझ बर्दाश्त करना होगा। भत्तों में से 17,200 करोड़ रुपये सिर्फ हाउस रेंट के भत्तों पर खर्च होगा।
अगर सरकार रिपोर्ट को क्रियान्वित करने में देर करती है तो भत्तों के मोर्चे पर ही सरकार कुछ पैसा बचा सकती है क्योंकि भत्ते पिछले समय से लागू नहीं होंगे जबकि वेतन वृद्धि पिछले समय से लागू होगी।
लेकिन, इस स्थान पर सरकार के लिए एकमात्र चुनौती पैसा ही नहीं होगा जिसका सामना करना सरकार को मुश्किल होगा बल्कि सिविल सरवंट के विभिन्न स्तरों के बीच बढ़ते असंतोष को खत्म करना सबसे बड़ी चुनौती साबित होगी। वे आपस में ही एक- दूसरे से उलझ रहे हैं। आईपीएस, आईआरएस, आईआईएस वेतन और रैंक में आईएएस से बराबरी चाहते हैं वहीं सेंट्रल सेक्रटरियट सर्विस को सिविल सर्विसेज में अपने से ठीक ऊपर वालों से विरोध है।
सेंट्रल सेक्रटरियट सर्विस फोरम के जनरल सेक्रट्री राकेश कुमार ने बताया, 'हमारा आईएएस से कोई टकराव नहीं है। लेकिन कई ग्रुप 'ए' सर्विस के अधिकारी हमें आगे बढ़ते नहीं देखना चाहते हैं। हमने आंदोलन का रास्ता अपनाया है क्योंकि वेतन आयोग ने कुछ निहित स्वार्थ वाले अधिकारियों के कारण हमारी बात नहीं सुनी।'
अगर सरकार सभी पक्षों को खुश करने का प्रयास करेगी तो खुद दिवालिया हो सकती है। ऐसे में कहा जा सकता है कि वेतन आयोग की सिफारिश का रास्ता अभी बहुत कठिन है।
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