हरियाणा शिक्षा बोर्ड की दसवीं व बारहवीं की प्रथम
सेमेस्टर आने के बाद अंबाला में बारहवीं की एक छात्र ने
ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली। दो दिन बाद अंबाला के ही जफरपुर में
दसवीं की छात्र ने जहर खा लिया। इससे एक दिन पहले करनाल में दसवीं की छात्र
ने फांसी लगा ली और सदमे में उसकी मां ने भी फंदा लगाकर जान दे दी। अंबाला
में बारहवीं की एक छात्र ने सिर्फ इसलिए जहरीला पदार्थ खा लिया कि
अभिभावकों ने उसे देर रात नेट पर चैटिंग से रोका था। सृष्टि की सबसे अनमोल
और सुंदर कृति जीवन को असमय खत्म कर देने की यह आत्मघाती प्रवृत्ति
चिंताजनक तो है ही, हमारी सोच, समझ और नई पीढ़ी को दिए जा रहे संस्कार पर
सवाल खड़ा कर रही है। किशोर वय के लड़के-लड़कियों के लिए आत्महत्या करना
खेल जैसा लगता है। उन्हें इसका अहसास नहीं कि आवेश या निराशा में उठाया गया
उनका कदम कितना खतरनाक है। यह उम्र सुनहरे भविष्य के सपने देखने की होती
है। पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों से मुक्त रहकर जीवन की बुनियाद
मजबूत करने के लिए जरूरी है कि इसका सदुपयोग किया जाए। ज्यादातर युवा ऐसा
करते भी हैं। यही सिद्धांतवादी, आदर्शवादी और उत्साह से लबरेज नई पीढ़ी देश
और समाज के विकास में अपना योगदान देती है। दुर्भाग्य से कुछ किशोरों व
युवाओं के मन में निराशा घर करने लगी है। आत्महत्या के ज्यादातर मामलों में
क्षणिक आवेश ही सामने आता है। किसी बात पर माता-पिता ने डांट दिया, मनमानी
करने से रोका या थोड़ा सख्त हो गए तो बच्चे बर्दाश्त नहीं करते। परीक्षा
परिणाम आने के समय जिस तरह इन घटनाओं में वृद्धि होती है, वह हमारी शिक्षा
और परवरिश के तौर-तरीकों पर भी सवाल उठाती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि
परिवार नाम की संस्था के टूटने का असर बच्चों पर पड़ा है। न तो उन्हें
अभिभावकों का उचित मार्गदर्शन मिल रहा है, न ही वह लाड़-प्यार। मां-बाप भी
अपनी संतान पर उस तरह ध्यान नहीं दे रहे, जैसा चाहिए। इसी का कुप्रभाव है
कि धैर्य, संतोष, सहनशीलता जैसे गुणों की कमी हो गई है। देश के भविष्य को
निराशा के भाव से निकालने के लिए जरूरी है कि परिवार, समाज और सरकार मिलकर
कार्य करें। dj
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