** नेबरहुड स्कूल अभी तक स्थापित नहीं, शिक्षा का स्तर गिरा
शिक्षा का अधिकार कानून के तहत आठवीं कक्षा तक के बच्चों को फेल नहीं करने के पीछे अहम मकसद यह था कि बच्चों को प्रायोगिक ढंग से पढ़ाया जाए। क्योंकि आठवीं कक्षा में फेल होने का डर बच्चों में इस कदर होता था कि वह रात भर सो भी नहीं पाते। फेल होने पर आत्महत्या करने के मामले बढ़ने लगे थे। ऐसे में किशोरों को फेल होने के डर से बचाने के लिए शिक्षा के अधिकार कानून में यह प्रावधान किया गया कि उन्हें अलग-अलग तरह की गतिविधियों के माध्यम से शिक्षा दी जाए। लेकिन यह उद्देश्य गौण हो गया और महज उसे पास व फेल के पुराने सिस्टम से जोड़कर शिक्षकों ने देखना शुरू कर दिया। लिहाजा आठवीं कक्षा तक की शिक्षा का स्तर लगातार नीचे जाता रहा।
शिक्षा के अधिकार कानून के तहत आठवीं तक के बच्चों को निशुल्क पुस्तकें शिक्षण सत्र की शुरुआत के साथ ही मिल जानी चाहिए। लेकिन स्थिति इससे बिलकुल जुदा है। शिक्षण सत्र के समापन चरण तक भी कई बच्चों को पूरी पुस्तकें नहीं मिल पाती। हालांकि इस साल स्थिति में सुधार आया और शिक्षण सत्र के कुछ महीनों बाद तक पुस्तकें बच्चों तक पहुंच गई। लेकिन कुछ महीनों बाद पुस्तकें देना भी विभाग की नाकामी की ओर इशारा करता है। इस कानून के तहत एक निश्चित दायरे में सरकारी विद्यालय नहीं होने पर निजी विद्यालय को नेबरहुड स्कूल बनाने का प्रावधान है। अचरज की बात यह है कि आज तक जिले में एक भी स्कूल को नेबरहुड की संज्ञा नहीं दी गई है। ऐसे में साफ तौर पर पता चलता है कि विभाग शिक्षा के अधिकार कानून को कितनी गंभीरता से ले रहा है।
समाजसेवी पंजाबी शिक्षक नरेश सैनी ने कहा कि शिक्षा के अधिकार कानून के तहत पहली से आठवीं कक्षा के बच्चों को प्रायोगिक शिक्षा देने की मंशा रखी गई थी। यह विचार अच्छा था, लेकिन इसके सफल नहीं होने के पीछे शिक्षकों की कार्यशैली जिम्मेदार रही। उन्होंने कभी भी बच्चों को गतिविधि आधारित शिक्षा देने के बारे में नहीं सोचा। बल्कि वह अपनी कमियों को छुपाने के नाम पर तर्क देते हैं कि सरकार ने किसी को फेल नहीं करने के आदेश दिए हैं। ऐसे में बच्चा भी पढ़ने को तैयार नहीं होता। जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी उदय प्रताप सिंह ने कहा कि जिले में शिक्षा के अधिकार कानून का पूरी तरह से पालन किया जा रहा है। यदि कहीं कमी है तो उसे दूर कर दिया जाएगा। djkrnl
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