** कैंट के चार प्रमुख कॉलेज में डिग्री प्राप्त करने वालों की प्रतिशतता महज 47 प्रतिशत, 6 साल में ही खुली पोल
अम्बाला : परीक्षा दी 2663 ने लेकिन पास हुए कुल 1260 विद्यार्थी। पास प्रतिशतता मात्र 47.31 प्रतिशत। अलबत्ता कॉलेज में शिक्षा का स्तर उठाने के लिए वर्ष 2008 में शुरू की गई सेमेस्टर सिस्टम प्रणाली ही अब कॉलेज व विद्यार्थियों के लिए सिरदर्द बन गई है। पास प्रतिशतता के साथ-साथ नंबर ऑफ वर्किंग-डे में भी गिरावट हो रही है। विद्यार्थी शिक्षा के लिए गैर जिम्मेदार भी होते जा रहे हैं। न फेल होने का डर है, न पास होने की चिंता। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन आने वाले प्रदेशभर के कॉलेजों की इस समय कुछ ऐसी ही हालत है। इन कॉलेजों में विद्यार्थियों के आंकड़े इस बात के जीते जागते गवाह हैं लेकिन केयू व उच्चतर शिक्षा विभाग को इस बात की शायद परवाह नहीं है।
इन कॉलेज से लिए आंकड़े भास्कर टीम ने कैंट के राजकीय स्नातकोत्तर कॉलेज, सनातन धर्म कॉलेज, आर्य कन्या कॉलेज तथा गांधी मेमोरियल नेशनल कॉलेज से वर्ष 2012-13 के दौरान जिन विद्यार्थियों को डिग्री मिली, के आंकड़े जुटाए। इनमें स्नातक व स्नातकोत्तर के विभिन्न संकायों के विद्यार्थियों को आंकड़ा लिया गया।
आर्य कॉलेज में कम पीजी कॉलेज में अधिक:
आर्य कन्या कॉलेज में कुल 250 छात्राओं ने विभिन्न संकाय के तहत परीक्षा दी लेकिन इनमें से केवल 27 छात्राओं की ही डिग्री आ सकी। कारण कुछ छात्राओं की पहले सेमेस्टर की रि नहीं टूटी तो कुछ की 2 या तीसरे की। कुछ ऐसी भी छात्राएं थी जो पास तो सभी में थी, लेकिन किसी एक या दो विषय में रि आने के कारण वे नई अंक तालिका में रि-अपीयर की परीक्षा को उत्तीर्ण करने पर भी अपनी पास अंक तालिका में भी अंक नहीं जुड़वा सके। यही हाल शेष तीनों कॉलेजों का भी है। गवर्नमेंट पीजी कॉलेज में 967 में से 569, एसडी कॉलेज में 903 में से 425 तथा जीएमएन कॉलेज में 547 में से 239 विद्यार्थियों की डिग्री आ सकी।
क्या कहना है प्रिंसिपल्स का
"सेमेस्टर सिस्टम के चलते हर सेमेस्टर में बिना रि के पास होने वाले छात्रों की संख्या कम है। जिस उद्देश्य को लेकर सेमेस्टर सिस्टम शुरू किया गया, वह पूरा नहीं हो सका, ऐसा लगता है। कई बार रिजल्ट तब आता है, जब अगले सेमेस्टर की परीक्षाएं चल रही होती हैं, वह भी गलत आ जाता है। ऐसे में विद्यार्थी का मनोबल गिर जाता है और वह उस परीक्षा में भी 100 प्रतिशत प्रदर्शन नहीं कर पाता। बाद में जांच पर पता चला है, जिसमें पेपर में विद्यार्थी की रि आई है, उसी में सबसे अधिक अंक थे।"--एमएल गुप्ता, प्रिंसिपल, जीएमएन कॉलेज।
"सेमेस्टर सिस्टम शिक्षा स्तर को उठाने के लिए शुरू किया गया था। लेकिन इसके कारण अब विद्यार्थी नॉन सीरियस हो रहे हैं। अगली कक्षा में प्रवेश के लिए किसी भी पेपर में पास होने की आवश्यकता नहीं होना इसका प्रमुख कारण है। दूसरे सेमेस्टर में केवल 50 प्रतिशत में पास होने पर तीसरे में दाखिला मिल जाता है। कई विद्यार्थियों की किसी सेमेस्टर में रि आ जाती है, वे उसे आगे स्पष्ट भी कर लेते हैं लेकिन अगली अंक तालिका में क्लियर अंक तालिका के नंबर नहीं जुडऩे के कारण उन्हें डिग्री नहीं मिल पाती। इसके अतिरिक्त इस सिस्टम के तहत बच्चों कई बार प्रेक्टिकल के लिए पहले ही फ्री कर दिया जाता है। बाद में पता चलता है कि प्रेक्टिकल की डेट आगे खिसक गई है। ऐसे में सही सिस्टम नहीं होने के कारण काफी टाइम जाया जाता है।"--डॉ. देशबंधू, प्रिंसिपल, एसडी कॉलेज
"छात्राएं सेमेस्टर सिस्टम के कारण सीरियस नहीं रही हैं। न ही सेमेस्टर सिस्टम के चलते को- करिकुलम एक्टिविटीज के लिए भी समय नहीं निकल पाता। सेमेस्टर खत्म होने से करीब 20 दिन पहले विद्यार्थी आना छोड़ देते हैं, नया सेमेस्टर शुरू होने के 20 दिन बाद आते हैं। पढ़ाने का समय मिलता है मात्र 2 से अढ़ाई माह। प्रिंसिपल एसोसिएशन ने इस बात को प्रशासन के समक्ष रखना चाहा, लेकिन केयू से समय ही नहीं मिल पाता।"--डॉ. नीना बेदी, प्रिंसिपल, आर्य कन्या कॉलेज। db
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