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Monday, 14 April 2014

कोर्ट के आदेशों के बाद भी छात्र को नहीं मिला दाखिला

** कम अटेंडेंस होने पर लॉ विभाग ने काटा था नाम
सीजेएम कोर्ट के फैसले के एक महीने बाद भी सीडीएलयू ने छात्र को दोबारा दाखिला नहीं दिया। एग्जाम में केवल 20 दिन रह गए। नौंवें सेमेस्टर में परीक्षा से वंचित रहने वाला छात्र का भविष्य एक बार फिर से दांव पर है। क्योंकि दो मई से लॉ विभाग के दसवें सेमेस्टर की परीक्षांए भी शुरू होने वाली है। 
बीएएलएलबी (पांच वर्षीय)के छात्र विकास के लेक्चर शार्ट होने पर 26 सितंबर 2013 को लॉ डिपार्टमेंट ने उसका नाम काट दिया था। छात्र ने विभाग के सामने खराब स्वास्थ्य का तर्क रखा और अपना मेडिकल दिया। दोबारा एडमिशन के लिए एचओडी को एप्लीकेशन दी। मगर दाखिला नहीं मिला। इसके बाद छात्र ने वीसी के पास एप्लीकेशन भेजी। वीसी ने एचओडी के पास भेज दी। फिर भी कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला। 
दाखिला न मिलने पर दिसंबर में नौंवें सेमेस्टर की परीक्षाओं से छात्र वंचित रह गया। छात्र विकास ने सीजेएम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। दस फरवरी 2014 को सीजेएम कोर्ट ने सीडीएलयू को आदेश दिया कि एक सप्ताह के अंदर याचिकाकर्ता के पुन प्रवेश की एप्लीकेशन का निपटारा किया जाए। मगर इस बार भी लॉ विभाग का फैसला नकारात्मक रहा। 
याचिकाकर्ता ने पुन 18 फरवरी को कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। चार मार्च को कोर्ट ने अपने फैसले में सीजेएम बलवंत सिंह ने विश्वविद्यालय को आदेश दिया कि छात्र का नौवें और दसवें सेमेस्टर में दोबारा एडमिशन दिया जाए। फैसला आने के एक महीना बाद भी सीडीएलयू ने छात्र को एडमिशन नहीं दिया। अब छात्र ने सीडीएलयू और लॉ विभाग पर न्याय की अवमानना करने के आरोप लगाते हुए याचिका दायर की है और संपत्ति कुर्की की मांग की। 
"दाखिला न मिलने पर हमनें अदालत की फिर से शरण ली है। कोर्ट ने सीडीएलयू को फिर से नोटिस जारी किया है। अब मामले की अगली सुनवाई 15 अप्रैल है।"--अनमोल शर्मा, एडवोकेट, याचिकाकर्ता पक्ष। 
मंगलवार को ही स्टेट्स बता पाऊंगा 
"चुनावों में उनकी ड्यूटी लगी हुई थी। उन्हें मामले की पूरी जानकारी नहीं है। मंगलवार को पूरा मैटर देखने के बाद ही बता पाऊंगा कि मामले का क्या स्टेट्स चल रहा है।"--बलजीत सिंह, लीगल एडवाइजर, सीडीएलयू। 
दो महीने तक कक्षा में नहीं आया था छात्र 
"छात्र विकास सेमेस्टर के दौरान दो महीने तक क्लास में नहीं आया। उसने प्राइवेट अस्पताल का मेडिकल दिया। जो कि मान्य नहीं होता। अपना पक्ष रखने के लिए लीगल ब्रांच को मामला भेज दिया था। हमने भी मामले में अपील की है।"--जेएस जाखड़, एचओडी, लॉ विभाग।                    dbsrs

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